किसी को पवित्र आत्मा से भरे जाने का मुख्य प्रमाण किसी तरह से सेवकाई के लिए शक्ति का प्रदर्शन है। इसमें अन्य भाषा में बोलना, भविष्यवाणी करना, स्तुति करना, प्रचार करना, घोषणा करना या साहसपूर्वक बोलना शामिल है। पवित्र आत्मा से भरा रहना एक अनुभव है जो निरंतर है। यह एक जीवन शैली है! पिता हमें अपनी पवित्र आत्मा से भर देता है ताकि हम अपने जीवन को जीने और दूसरों की सेवा करने की शक्ति पा सकें।
पवित्र आत्मा कौन है?
एक व्यक्ति – यीशु और पिता के बराबर
(16) मैं पिता से प्रार्थना करूँगा और वह तुम्हें एक दूसरा सहायक प्रदान करेगा, जो सदा तुम्हारे साथ रहेगा।
(17) वह सत्य का आत्मा है, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वह उसे न तो देखता है और न जानता है। तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है और तुम में रहेगा।
एक वादा
देखो, मेरे पिता ने जिस वरदान की प्रतिज्ञा की है, उसे मैं तुम पर भेजूँगा। इसलिए जब तक तुम ऊपर के सामर्थ्य से सम्पन्न न हो जाओ, तुम नगर में ठहरे रहो।”
एक उपहार
(4) येशु ने प्रेरितों के साथ भोजन करते समय उन्हें आज्ञा दी कि वे यरूशलेम नगर नहीं छोड़ें, बल्कि पिता ने जो प्रतिज्ञा की है, उसकी प्रतीक्षा करते रहें। उन्होंने कहा, “मैंने तुम लोगों को उस प्रतिज्ञा के विषय में बता दिया है।
(5) योहन ने तो जल से बपतिस्मा दिया था, परन्तु थोड़े ही दिनों बाद तुम्हें पवित्र आत्मा से बपतिस्मा दिया जायेगा।”
स्वामित्व की एक मुहर (चिह्न)
परमेश्वर ने विमोचन-दिवस के लिए आप लोगों पर पवित्र आत्मा की मुहर लगायी है। आप परमेश्वर के उस पवित्र आत्मा को दु:ख नहीं दें।
एक गारंटी
(13) आप लोगों ने भी सत्य का वचन, अपनी मुक्ति का शुभ समाचार, सुनने के बाद मसीह में विश्वास किया है और आप पर उस पवित्र आत्मा की मुहर लग गयी, जिसकी प्रतिज्ञा की गयी थी।
(14) पवित्र आत्मा हमें विरासत की अग्रिम राशि के रूप में उस उद्देश्य से दिया गया है, कि सम्पूर्णता प्राप्त करने पर हमारा पूर्ण विमोचन हो, जिससे परमेश्वर की महिमा और स्तुति हो।
जमा राशि
(21) परमेश्वर, आप के साथ-साथ, हमें भी मसीह में सुदृढ़ बनाये रखता है और उन्हीं अभिषिक्त मसीह में हमारा अभिषेक करता है।
(22) परमेश्वर ने हम पर अपनी मुहर लगायी और अग्रिम राशि के रूप में हमारे हृदयों को पवित्र आत्मा प्रदान किया है।
एक साथी
(17) वह सत्य का आत्मा है, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वह उसे न तो देखता है और न जानता है। तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है और तुम में रहेगा।
(18) “मैं तुम को अनाथ नहीं छोड़ूँगा, मैं तुम्हारे पास आ रहा हूँ।
एक सलाहकार
परन्तु ‘सहायक’, अर्थात् पवित्र आत्मा, जिसे पिता मेरे नाम पर भेजेगा, तुम्हें सब कुछ सिखाएगा। जो कुछ मैंने तुम से कहा है, वह उसका स्मरण तुम्हें कराएगा।
सच्चाई
(13) जब वह, अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तब वह सम्पूर्ण सत्य में तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा; क्योंकि वह अपनी ओर से नहीं कहेगा, बल्कि वह जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा और तुम्हें आने वाली बातों के विषय में बताएगा।
(14) वह मुझे महिमान्वित करेगा, क्योंकि उसे मेरी ओर से जो मिला है, वह तुम्हें वही बताएगा।
(15) जो कुछ पिता का है, वह मेरा है। इसलिये मैंने कहा कि उसे मेरी ओर से जो मिला है, वह तुम्हें वही बताएगा।
पवित्र आत्मा किसके लिए है?
किन्तु पवित्र आत्मा तुम पर उतरेगा और तुम्हें सामर्थ्य प्रदान करेगा और तुम यरूशलेम में, समस्त यहूदा और सामरी प्रदेशों में तथा पृथ्वी के अन्तिम छोर तक मेरे साक्षी होगे।”
(4) वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गये और जो वाणी का वरदान पवित्र आत्मा ने उन्हें दिया, उस के अनुसार भिन्न-भिन्न भाषाओं में बोलने लगे।
(5) पृथ्वी के सब देशों से आये हुए भक्त यहूदी उस समय यरूशलेम में निवास कर रहे थे।
(6) जब यह आवाज हुई, तो भीड़ लग गई। लोग घबरा गये; क्योंकि हर एक अपनी-अपनी भाषा में शिष्यों को बोलते सुन रहा था।
(7) वे चकित रह गये और विस्मित हो कहने लगे, “क्या ये बोलने वाले सब-के-सब गलीली नहीं हैं?
(8) तो फिर हम में हर एक अपनी-अपनी जन्मभूमि की भाषा कैसे सुन रहा है?
(9) हम पारथी, मादी और एलामी लोग; मेसोपोतामिया, यहूदा और कप्पदूकिया, पोंतुस और आसिया,
(10) फ्रुगिया और पंफुलिया, मिस्र और कुरेने के निकटवर्ती लीबिया के निवासी; रोम के यहूदी तथा नवयहूदी प्रवासी,
(11) क्रेती और अरबी लोग − हम सब अपनी-अपनी भाषा में इन्हें परमेश्वर के महान कार्यों की चर्चा करते सुन रहे हैं।”
(12) वे सब चकित रह गये और दुविधा में पड़कर एक-दूसरे से कहने लगे, “यह क्या बात है?”
(13) परंतु दूसरों ने उपहास करते हुए कहा, “ये तो मदिरा पी कर मतवाले हो रहे हैं।”
(14) पतरस ने ग्यारहों के साथ खड़े हो कर लोगों को सम्बोधित करते हुए ऊंचे स्वर से कहा, “यहूदी भाइयो और यरूशलेम के सब निवासियो! आप मेरी बात ध्यान से सुनें और यह जान लें कि
(15) ये लोग मतवाले नहीं हैं, जैसा कि आप समझते हैं। अभी तो दिन के नौ बजे हैं। 16परंतु यह वह बात है, जिसके विषय में नबी योएल ने कहा है, 17परमेश्वर यह कहता है :
‘मैं अन्तिम दिनों में सब मनुष्यों पर अपना आत्मा उंडेलूंगा। तुम्हारे पुत्र और पुत्रियाँ नबूवत करेंगे, तुम्हारे नवयुवक दिव्य दर्शन पायेंगे और तुम्हारे बड़े-बूढ़े स्वप्न देखेंगे।
(18) मैं उन दिनों अपने दास-दासियों पर अपना आत्मा उंडेलूंगा और वे नबूवत करेंगे।
उनकी प्रार्थना समाप्त होने पर वह स्थान, जहाँ वे एकत्र थे, हिल गया। सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गये और निर्भीकता के साथ परमेश्वर का वचन सुनाने लगे।
जब पौलुस ने उन पर हाथ रखा, तो पवित्र आत्मा उन पर उतरा और वे अध्यात्म भाषाएं बोलने और नबूवत करने लगे।
(18) मदिरा पी कर मतवाले नहीं बनें, क्योंकि इससे विषय-वासना उत्पन्न होती है, बल्कि पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जायें।
(19) मिल कर भजन, स्तोत्र और आध्यात्मिक गीत गायें; पूरे हृदय से प्रभु के आदर में गाते-बजाते रहें।
(20) हमारे प्रभु येशु मसीह के नाम पर सब समय, सब कुछ के लिए, पिता-परमेश्वर को धन्यवाद देते रहें।
आप लोग हर समय पवित्र आत्मा में सब प्रकार की प्रार्थना तथा निवेदन करते रहें। आप लोग जागते रहें और सब सन्तों के लिए लगन से निरन्तर प्रार्थना करते रहें।
किन्तु प्रिय भाइयो और बहिनो! आप अपने परमपावन विश्वास की नींव पर अपने जीवन का निर्माण करें। पवित्र आत्मा में प्रार्थना करते रहें।
परिणाम क्या हैं?
ग्रीक शब्द और अर्थ कोष्ठक [] में दिखाया गया है।
(41) ज्यों ही एलीशेबा ने मरियम का अभिवादन सुना, बच्चा उसके गर्भ में उछल पड़ा और एलीशेबा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गयी
(42) और ऊंचे स्वर से बोल उठी, “आप नारियों में धन्य हैं और धन्य है आपके गर्भ का फल!
(43) मुझे यह सौभाग्य कैसे प्राप्त हुआ कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आयीं?
(44) क्योंकि देखिए, ज्यों ही आपका प्रणाम मेरे कानों में पड़ा, बच्चा मेरे गर्भ में आनन्द के मारे उछल पड़ा।
(45) धन्य हैं आप, जिन्होंने यह विश्वास किया कि प्रभु ने आप से जो कहा, वह पूरा होगा!”
इलीशिबा पवित्र आत्मा से भर गयी
[प्लेथो – भर देना, आपूर्ति]
→ उसने भविष्यवाणी की।
(25) उस समय यरूशलेम में शिमोन नामक एक धर्मी तथा भक्त मनुष्य रहता था। वह इस्राएल की सान्त्वना की प्रतीक्षा में था। पवित्र आत्मा उस पर था
(26) और उसे पवित्र आत्मा से यह प्रकाशन मिला था कि, जब तक वह प्रभु के मसीह के दर्शन न कर लेगा, तब तक उसकी मृत्यु न होगी।
(27) वह पवित्र आत्मा की प्रेरणा से मन्दिर में आया। जब माता-पिता बालक येशु के लिए व्यवस्था की विधियाँ पूरी करने उसे भीतर लाए,
(28) तब शिमोन ने बालक को अपनी गोद में लिया और परमेश्वर की स्तुति करते हुए कहा,
(29) “हे स्वामी, अब तू अपने वचन के अनुसार अपने सेवक को शान्ति के साथ विदा कर;
(30) क्योंकि मेरी आँखों ने उस मुक्ति को देख लिया,
(31) जिसे तूने सब लोगों के सम्मुख प्रस्तुत किया है।
(32) यह अन्य-जातियों को प्रकाशन और तेरी प्रजा इस्राएल को गौरव देने वाली ज्योति है।”
पवित्र आत्मा शमौन पर था
[एपी – पर]
→ उसने भविष्यवाणी की।
(1) येशु पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो कर यर्दन नदी के तट से लौटे, तो आत्मा उन्हें निर्जन प्रदेश में ले गया
(2) जहाँ शैतान चालीस दिन तक उनकी परीक्षा लेता रहा। येशु ने उन दिनों कुछ भी नहीं खाया। जब चालीस दिन बीत गए तब उन्हें बहुत भूख लगी।
(3) शैतान ने उनसे कहा, “यदि आप परमेश्वर के पुत्र हैं, तो इस पत्थर से कह दीजिए कि यह रोटी बन जाए।”
(4) परन्तु येशु ने उत्तर दिया, “धर्मग्रंथ में लिखा है : ‘मनुष्य केवल रोटी से ही नहीं जीता है।’ ”
(5) फिर शैतान उन्हें ऊपर उठा ले गया और क्षण भर में संसार के सब राज्य दिखाए।
(6) शैतान उनसे बोला, “मैं आप को इन सब राज्यों का अधिकार और इनका वैभव दे दूँगा। यह सब मुझे सौंपा गया है और मैं जिस को चाहता हूँ, उस को यह देता हूँ।
(7) यदि आप मेरी आराधना करें, तो यह सब आप का हो जाएगा।”
(8) पर येशु ने उसे उत्तर दिया, “धर्मग्रन्थ में यह लिखा है : ‘अपने प्रभु परमेश्वर की आराधना करो और केवल उसी की सेवा करो।’ ”
(9) तब शैतान येशु को यरूशलेम नगर में ले गया और मन्दिर के शिखर पर उन्हें खड़ा कर उनसे बोला, “यदि आप परमेश्वर के पुत्र हैं, तो यहाँ से नीचे कूद जाइए;
(10) क्योंकि धर्मग्रन्थ में लिखा है : ‘आपके विषय में परमेश्वर अपने दूतों को आदेश देगा कि वे आपकी रक्षा करें।
(11) वे आपको अपने हाथों पर संभाल लेंगे कि कहीं आपके पैरों को पत्थर से चोट न लगे।’ ”
(12) येशु ने उसे उत्तर दिया, “यह भी कहा गया है : ‘अपने प्रभु परमेश्वर की परीक्षा मत लो।’ ”
(13) इस तरह सब प्रकार की परीक्षा लेने के बाद शैतान, निश्चित समय पर लौटने के लिए, येशु के पास से चला गया।
(14) आत्मा के सामर्थ्य से सम्पन्न हो कर येशु गलील प्रदेश को लौटे और उनकी चर्चा आस-पास के समस्त क्षेत्र में फैल गयी।
(15) वह उनके सभागृहों में शिक्षा देने लगे और सब लोग उनकी प्रशंसा करते थे।
यीशु पवित्र आत्मा से भरा हुआ।
[प्लेरेस — भरा होना]
→ वह सिखा रहा था, सामर्थ बना रहा था।
देखो, मेरे पिता ने जिस वरदान की प्रतिज्ञा की है, उसे मैं तुम पर भेजूँगा। इसलिए जब तक तुम ऊपर के सामर्थ्य से सम्पन्न न हो जाओ, तुम नगर में ठहरे रहो।”
(शिष्य) शक्ति से संपन्न होंगे।
[एंडुओ – उतर आना, नीचे डूबना]
→ सेवकाई की शक्ति।
पतरस ने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो कर उन से कहा, “जनता के शासको और धर्मवृद्धो!
पतरस पवित्र आत्मा से भर गया।
[पलेस्तेएस —उसी क्षण भर गया]
→ उसने प्रचार किया।
प्रेरितों 10:44 (HINDICL-BSI)
पतरस बोल ही रहे थे कि पवित्र आत्मा उन सब पर उतर आया, जो उनका प्रवचन सुन रहे थे।
प्रेरितों 11:15 (HINDICL-BSI)
“मैंने बोलना आरम्भ किया ही था कि पवित्र आत्मा, जैसे कलीसिया के प्रारम्भ में हम पर उतरा था, वैसे ही उन लोगों पर उतर आया।
पवित्र आत्मा कुरनेलियुस के घराने पर उतर आया
[एपीपीप्तो — उतर आना, गिरना]
→ वे अन्य भाषा बोलते थे, और परमेश्वर की प्रशंसा करने लगे
शिष्य आनन्द और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण थे।
पवित्र आत्मा से भरे हुए शिष्य।
[प्लेरू (पुनरावृति काल) — फिर से या लगातार भरा हुआ]
→ प्रचार किया और बहुतों ने उनपर विश्वास किया
पवित्र आत्मा को कौन प्राप्त कर सकता है?
(38) जो मुझ में विश्वास करता है, वह अपनी प्यास बुझाए। जैसा कि धर्मग्रन्थ का कथन है : ‘उसके अन्तस्तल से संजीवन-जल की नदियाँ बह निकलेंगी।’ ”
(39) उन्होंने यह बात उस आत्मा के विषय में कही, जो उन में विश्वास करने वालों को प्राप्त होगा। उस समय तक आत्मा नहीं था, क्योंकि येशु अभी महिमान्वित नहीं हुए थे।
कितनी बार लोग पवित्र आत्मा से भर सकते हैं?
मदिरा पी कर मतवाले नहीं बनें, क्योंकि इससे विषय-वासना उत्पन्न होती है, बल्कि पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जायें।
अन्य भाषा किस लिए है?
(1) आप प्रेम की साधना करते रहें। आप आध्यात्मिक वरदानों की धुन में रहें; किन्तु विशेष रूप से नबूवत के वरदान की अभिलाषा किया करें।
(2) क्योंकि जो अध्यात्म भाषा में बोलता है, वह मनुष्यों से नहीं, बल्कि परमेश्वर से बोलता है। कोई भी उसे नहीं समझता : वह आत्मा से प्रेरित होकर रहस्यमय बातें करता है।
(3) किन्तु जो नबूवत करता है, वह मनुष्यों से आध्यात्मिक निर्माण, प्रोत्साहन और सान्त्वना की बातें करता है।
(4) जो अध्यात्म भाषा में बोलता है, वह अपना ही आध्यात्मिक निर्माण करता है; किन्तु जो नबूवत करता है, वह कलीसिया का आध्यात्मिक निर्माण करता है।
(5) मैं तो चाहता हूँ कि आप सब को अध्यात्म भाषाओं में बोलने का वरदान मिले, किन्तु इससे अधिक यह चाहता हूँ कि आप को नबूवत करने का वरदान मिले। यदि अध्यात्म भाषाओं में बोलने वाला व्यक्ति कलीसिया के आध्यात्मिक निर्माण के लिए उनकी व्याख्या नहीं करता, तो इसकी अपेक्षा नबूवत करने वाले का महत्व अधिक है।
(6) भाइयो और बहिनो! मान लीजिए कि मैं आप लोगों के यहाँ आकर अध्यात्म भाषाओं में बोलूँ और परमेश्वर द्वारा प्रकाशित सत्य, ज्ञान, नबूवत अथवा शिक्षा न प्रदान करूँ, तो मेरे बोलने से आप को क्या लाभ होगा?
(7) बाँसुरी या वीणा – जैसे निर्जीव वाद्यों के विषय में भी यही बात है। यदि उनसे उत्पन्न स्वरों में कोई भेद नहीं है, तो यह कैसे पता चलेगा कि बाँसुरी या वीणा पर क्या बजाया जा रहा है?
(8) यदि तुरही का स्वर अस्पष्ट है, तो कौन अपने को युद्ध के लिए तैयार करेगा?
(9) आपके विषय में भी यही बात है। यदि आप अध्यात्म भाषा में बोलते समय सुबोध शब्द नहीं बोलते, तो यह कैसे पता चलेगा कि आप क्या कह रहे हैं? आप केवल हवा से बातें करेंगे।
(10) संसार में न जाने कितने प्रकार के शब्द हैं और उन में एक भी निरर्थक नहीं है।
(11) यदि मैं किसी शब्द का अर्थ नहीं जानता, तो मैं बोलने वाले के लिए परदेशी हूँ और बोलनेवाला मेरे लिए परदेशी है।
(12) आप के विषय में भी यही बात है।आप लोग आध्यात्मिक वरदानों की धुन में रहते हैं; इसलिए ऐसे वरदानों से सम्पन्न होने का प्रयत्न करें, जो कलीसिया के आध्यात्मिक निर्माण में सहायक हों।
(13) अध्यात्म भाषा में बोलने वाला प्रार्थना करे, जिससे उसको व्याख्या करने का वरदान भी मिल जाये;
(14) क्योंकि यदि मैं अध्यात्म भाषा में प्रार्थना करता हूँ, तो मेरी आत्मा प्रार्थना करती हैं किन्तु मेरी बुद्धि निष्क्रिय है।
(15) तो क्या करना चाहिए? मैं अपनी आत्मा से प्रार्थना करूँगा और अपनी बुद्धि से भी। मैं अपनी आत्मा से गीत गाऊंगा और अपनी बुद्धि से भी।
(16) यदि आप आत्मा से आविष्ट होकर परमेश्वर की स्तुति करते हैं, तो वहाँ उपस्थित साधारण व्यक्ति आपका धन्यवाद सुनकर कैसे “आमेन” कह सकता है? वह यह भी नहीं जानता कि आप क्या कह रहे हैं।
(17) आपका धन्यवाद भले ही सुन्दर हो, किन्तु इससे दूसरे व्यक्ति का आध्यात्मिक निर्माण नहीं होता।
(18) परमेश्वर को धन्यवाद! मुझे आप सब से अधिक अध्यात्म भाषाओं में बोलने का वरदान मिला है,
जो अध्यात्म भाषा में बोलता है, वह अपना ही आध्यात्मिक निर्माण करता है; किन्तु जो नबूवत करता है, वह कलीसिया का आध्यात्मिक निर्माण करता है।
यदि आप आत्मा से आविष्ट होकर परमेश्वर की स्तुति करते हैं, तो वहाँ उपस्थित साधारण व्यक्ति आपका धन्यवाद सुनकर कैसे “आमेन” कह सकता है? वह यह भी नहीं जानता कि आप क्या कह रहे हैं।
परमेश्वर को धन्यवाद! मुझे आप सब से अधिक अध्यात्म भाषाओं में बोलने का वरदान मिला है,
सार्वजनिक सेटिंग में बुद्धिमान वचन और भविष्यवाणी ‘अन्य भाषा’ से बेहतर क्यों हैं?
दोस्त से पूछें
क्या आपके पास पवित्र आत्मा के विषय में कोई प्रश्न है?
आवेदन
लूकस 11:13 (HINDICL-BSI)
बुरे होने पर भी यदि तुम अपने बच्चों को सहज ही अच्छी वस्तुएँ देते हो, तो स्वर्गिक पिता अपने माँगने वालों को पवित्र आत्मा क्यों नहीं देगा?”
प्रेरितों 8:17 (HINDICL-BSI)
अत: पतरस और योहन ने उन पर हाथ रखे और उन्हें पवित्र आत्मा प्राप्त हो गया।
हम पवित्र आत्मा को कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
मॉडल प्रार्थना
पवित्र आत्मा, मैं प्रार्थना करता हूं कि आप आयें और मुझमे निवास करें, और मुझे अपनी शक्ति से भर दें ताकि मै दूसरों की सेवा कर सकूँ।
प्रमुख पध
आप लोग हर समय पवित्र आत्मा में सब प्रकार की प्रार्थना तथा निवेदन करते रहें। आप लोग जागते रहें और सब सन्तों के लिए लगन से निरन्तर प्रार्थना करते रहें।