दूसरों को रिहा करना
जब हम कुछ गलत करते हैं तो हम परमेश्वर से या अन्य लोगों से माफ़ी मांग लेते हैं। लेकिन, जब कोई हमारे खिलाफ कुछ गलत करता है तो हम क्या करते हैं? बाइबल में “माफी” शब्द का अर्थ है “रिहा करना” या बस “जाने दो।” जीवन में, अपराधों के लिए माफ़ी प्राप्त करना बहुत कठिन है। इस दौरान नाराज़गी और चोटों का उभरना स्वाभाविक है, लेकिन स्वस्थ रिश्ते रखने के लिए भले ही लोग हमसे माफी न मांगें, उस चीज़ को “जाने देने,” की जरूरत है। बाइबल हमें दूसरों को क्षमा करना सिखाती है। उसी तरह, जैसे हमने परमेश्वर से क्षमा प्राप्त की है।
दूसरों को क्षमा करने के बारे में यीशु की कहानी
तब पतरस ने पास आ कर येशु से कहा, “प्रभु! यदि मेरा भाई अथवा बहिन मेरे विरुद्ध अपराध करता जाए, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूँ? क्या सात बार तक?”
आपके विचार मे पतरस ने यीशु से यह सवाल क्यों पूछा?
उस सेवक के स्वामी को उस पर तरस आया और उसने उसे मुक्त कर जाने दिया और उसका कर्ज माफ कर दिया।
राजा ने उस आदमी का कर्ज क्यों माफ किया?
(32) तब स्वामी ने उस सेवक को बुला कर कहा, ‘दुष्ट सेवक! तुम्हारी अनुनय-विनय पर मैंने तुम्हारा सारा कर्ज माफ कर दिया था,
(33) तो जिस प्रकार मैंने तुम पर दया की थी, क्या उसी प्रकार तुम्हें भी अपने सह-सेवक पर दया नहीं करनी चाहिए थी?’
उस आदमी ने जो किया, उसमें क्या गलत था?
(21) तब पतरस ने पास आ कर येशु से कहा, “प्रभु! यदि मेरा भाई अथवा बहिन मेरे विरुद्ध अपराध करता जाए, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूँ? क्या सात बार तक?”
(22) येशु ने उत्तर दिया, “मैं तुम से नहीं कहता − सात बार तक, बल्कि सत्तर गुना सात बार तक।
(23) “यही कारण है कि स्वर्ग का राज्य उस राजा के सदृश है, जो अपने सेवकों से लेखा लेना चाहता था।
(24) जब वह लेखा लेने लगा, तब उसके सामने एक सेवक लाया गया। उस पर दस हजार सोने के सिक्कों का कर्ज था।
(25) कर्ज चुकाने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं था, इसलिए स्वामी ने आदेश दिया कि उसे, उसकी पत्नी, उसके बच्चों और उसकी सारी जायदाद को बेच दिया जाए और ऋण अदा कर लिया जाए।
(26) इस पर वह सेवक उसके पैरों पर गिर पड़ा और यह कहते हुए अनुनय-विनय करने लगा, ‘धैर्य रखिए। मैं आपको सब कुछ चुका दूँगा।’
(27) उस सेवक के स्वामी को उस पर तरस आया और उसने उसे मुक्त कर जाने दिया और उसका कर्ज माफ कर दिया।
(28) जब वह सेवक बाहर निकला, तब वह अपने एक सह-सेवक से मिला, जिस पर उसका लगभग एक सौ चाँदी के सिक्कों का कर्ज था। उसने उसे पकड़ लिया और उसका गला दबा कर कहा, ‘अपना कर्ज चुका दो।’
(29) सह-सेवक उसके पैरों पर गिर पड़ा और यह कहते हुए अनुनय-विनय करने लगा, ‘धैर्य रखिए, मैं आप को कर्ज चुका दूँगा।’
(30) परन्तु उसने नहीं माना और जा कर उसे तब तक के लिए बन्दीगृह में डलवा दिया, जब तक वह अपना कर्ज न चुका दे।
(31) यह सब देख कर उसके दूसरे सह-सेवक बहुत दु:खी हुए और उन्होंने अपने स्वामी के पास जा कर सारी बातें बता दीं।
(32) तब स्वामी ने उस सेवक को बुला कर कहा, ‘दुष्ट सेवक! तुम्हारी अनुनय-विनय पर मैंने तुम्हारा सारा कर्ज माफ कर दिया था,
(33) तो जिस प्रकार मैंने तुम पर दया की थी, क्या उसी प्रकार तुम्हें भी अपने सह-सेवक पर दया नहीं करनी चाहिए थी?’
(34) और स्वामी ने क्रुद्ध हो कर उसे तब तक के लिए यंत्रणा देने वालों के हवाले कर दिया, जब तक वह कौड़ी-कौड़ी न चुका दे।
(35) इसी प्रकार यदि तुम में हर एक जन अपने भाई-बहिन को पूरे हृदय से क्षमा नहीं करेगा, तो मेरा स्वर्गिक पिता भी तुम्हारे साथ ऐसा ही करेगा।”
यीशु पतरस को क्या सिखाने कि कोशिश कर रहा था?
हमें दूसरों को क्यों माफ करना चाहिए?
(14) “यदि तुम दूसरों के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गिक पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा।
(15) परन्तु यदि तुम दूसरों को क्षमा नहीं करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा नहीं करेगा।
परमेश्वर का हमें क्षमा करना और हमें दूसरों को क्षमा करने के बीच क्या संबंध है?
लूकस 6:37-38 (HINDICL-BSI)
(37) “दोष न लगाओ तो तुम पर भी दोष नहीं लगाया जाएगा। किसी के विरुद्ध निर्णय न दो तो तुम्हारे विरुद्ध भी निर्णय नहीं दिया जाएगा। क्षमा करो तो तुम्हें भी क्षमा मिल जाएगी।
(38) दो तो तुम्हें भी दिया जाएगा। दबा-दबा कर, हिला-हिला कर भरी हुई, ऊपर उठी हुई, पूरी-की-पूरी नाप तुम्हारी गोद में डाली जाएगी; क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी नाप से तुम्हारे लिए भी नापा जाएगा।”
रोमियों 12:17-19 (HINDICL-BSI)
(17) बुराई के बदले बुराई नहीं करें। जो बातें सब मनुष्यों की दृष्टि में सात्विक हैं, उन्हें अपना लक्ष्य बनाएँ।
(18) जहाँ तक हो सके, अपनी ओर से सब के साथ शान्तिपूर्ण संबंध रखें।
(19) प्रिय भाइयो और बहिनो! आप स्वयं बदला न लें, बल्कि उसे परमेश्वर के प्रकोप पर छोड़ दें; क्योंकि धर्मग्रंथ में लिखा है : “प्रभु कहता है: प्रतिशोध लेना मेरा काम है, मैं ही बदला लूंगा।”
इब्रानियों 10:30 (HINDICL-BSI)
क्योंकि हम जानते हैं कि किसने यह कहा है, “प्रतिशोध लेना मेरा अधिकार है, मैं ही बदला लूँगा” और फिर, “प्रभु अपनी प्रजा का न्याय करेगा।”
हमें कभी दूसरों का न्याय क्यों नहीं करना चाहिए और क्यों बदला नही लेना चाहिए?
[येशु ने कहा, “पिता! इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं।”] तब उन्होंने चििट्ठयाँ डाल कर येशु के वस्त्र आपस में बाँट लिये।
हम यीशु के उदाहरण का अनुसरण कैसे कर सकते हैं?
जाने दो
“जब तुम प्रार्थना के लिए खड़े हो और तुम्हें किसी से कोई शिकायत हो, तो उसे क्षमा कर दो, जिससे तुम्हारा स्वर्गिक पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा कर दे।”
क्षमा ना करना हमारे अपने जीवन को कैसे प्रभावित या सीमित करती है?
ऐसी कौन सी चीजें हैं जिन्हें हम “पकड़” लेते हैं, जबकि हमे उन्हें जाने देना चाहिए?
(12) आप लोग परमेश्वर की पवित्र एवं परमप्रिय चुनी हुई प्रजा हैं। इसलिए आप लोगों को सहानुभूति, अनुकम्पा, विनम्रता, कोमलता और सहनशीलता धारण करनी चाहिए।
(13) आप एक दूसरे को सहन करें और यदि किसी को किसी से कोई शिकायत हो, तो एक दूसरे को क्षमा करें। प्रभु ने आप लोगों को क्षमा कर दिया। आप लोग भी ऐसा ही करें।
यह वचन हमें दूसरे लोगों को माफ करने में कैसे मदद कर सकता है?
दोस्त से पूछें
- क्या आप किसी को माफ करने की कहानी हमे बता सकते हैं?
- आपने उस व्यक्ति को क्यों और कैसे क्षमा किया?
- ऐसा करने से आपकी कैसे मदद हुई?
आवेदन
- हम किसी को कैसे क्षमा करते हैं?
- हमें अपनी सोच और अपने कार्यों को बदलने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?
- प्रार्थना करें और परमेश्वर से मांग करें कि आपको जितनी बार भी ज़रूरत हो माफ करने में मदद करें।
मॉडल प्रार्थना
प्रभु यीशु, मुझे क्षमा करने के लिए धन्यवाद। और अब, मैं उन सबको क्षमा करता हूं जिन्होंने मुझे चोट पहुंचाई है। कृपया उन लोगों को आशीष देने में मेरी मदद करें। मैं आपको धन्यवाद देता हूं कि आप मेरे दिल को चंगा करते हैं और मुझे किसी भी चोट या कड़वाहट से मुक्त करते हैं।
प्रमुख पध
आप एक दूसरे को सहन करें और यदि किसी को किसी से कोई शिकायत हो, तो एक दूसरे को क्षमा करें। प्रभु ने आप लोगों को क्षमा कर दिया। आप लोग भी ऐसा ही करें।