तुम सब से पहले परमेश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज करो तो ये सब वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएँगी।
पवित्रशास्त्र स्पष्ट है, जब हम परमेश्वर के राज्य को अन्य सभी से ज्यादा चाहते हैं, और सही तरीके से जीवन जीते हैं, तो परमेश्वर हमें वह सब कुछ प्रदान करता है जिसकी हमें आवश्यकता है। इसका मतलब है कि परमेश्वर का राज्य हमारे जीवन में आता है। जबकि हम अपनी सांसारिक सांस्कृतिक विरासत के लिए आभारी हो सकते हैं, हमे परमेश्वर की राज्य संस्कृति को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
कौन परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकता है?
निम्नलिखित वचनों को पढ़ें और लिखें कि कौन परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकता है और क्यों।
(15) लोग येशु के पास छोटे बच्चों को भी लाए कि वह उन्हें स्पर्श करें। शिष्यों ने यह देख कर लोगों को डाँटा।
(16) किन्तु येशु ने बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा, “बच्चों को मेरे पास आने दो, उन्हें मत रोको; क्योंकि परमेश्वर का राज्य उन जैसे लोगों का ही है।
(17) मैं तुम से सच कहता हूँ : जो मनुष्य छोटे बालक की तरह परमेश्वर का राज्य ग्रहण नहीं करता, वह उस में कभी प्रवेश नहीं करेगा।”
वहाँ के रोगियों को स्वस्थ करना और उन से कहना, ‘परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ गया है।’
(23) येशु ने चारों ओर दृष्टि दौड़ायी और अपने शिष्यों से कहा, “धनवानों के लिए परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन होगा!”
(24) शिष्य यह बात सुन कर चकित रह गये। परन्तु येशु ने उनसे फिर कहा, “बच्चो! परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन है!
(25) परमेश्वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने की अपेक्षा ऊंट का सूई के छेद से होकर निकलना अधिक सरल है।”
(26) शिष्य और भी विस्मित हो गये और एक-दूसरे से बोले, “तो फिर किसका उद्धार हो सकता है?”
(27) येशु ने उन्हें एकटक देखा और कहा, “मनुष्यों के लिए तो यह असम्भव है, किन्तु परमेश्वर के लिए नहीं; क्योंकि परमेश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है।”
परमेश्वर का राज्य कैसा है?
परमेश्वर के राज्य की तुलना में क्या है और आपको क्या लगता है कि यीशु ये तुलना क्यों करते हैं?
(18) येशु ने कहा, “परमेश्वर का राज्य किसके समान है? मैं इसकी तुलना किस से करूँ?
(19) वह उस राई के दाने के समान है, जिसे ले कर किसी मनुष्य ने अपने उद्यान में बोया। वह बढ़ते-बढ़ते पेड़ हो गया और आकाश के पक्षी उसकी डालियों में बसेरा करने आए।”
(20) येशु ने फिर कहा, “मैं परमेश्वर के राज्य की तुलना किस से करूँ?
(21) वह उस ख़मीर के समान है, जिसे ले कर किसी स्त्री ने दस किलो आटे में मिला दिया और होते-होते सारा आटा ख़मीर हो गया।”
परमेश्वर के राज्य किसके समान है?
बताइए कि परमेश्वर का राज्य क्या है।
(20) एक बार फरीसियों ने उन से पूछा कि परमेश्वर का राज्य कब आएगा, तब येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “परमेश्वर का राज्य प्रकट रूप से नहीं आता कि लोग उसे देखें।
(21) लोग यह नहीं कह सकेंगे, ‘देखो, वह यहाँ है’ अथवा ‘वह वहाँ है’; क्योंकि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे मध्य में है।”
क्योंकि परमेश्वर का राज्य खाने-पीने का नहीं, बल्कि वह धार्मिकता, शान्ति और आनन्द का विषय है, जो पवित्र आत्मा से प्राप्त होते हैं।
क्योंकि परमेश्वर का राज्य बातों में नहीं, बल्कि शक्तिशाली कार्यों में है।
चोर, लोभी, शराबी, निन्दक और धोखेबाज परमेश्वर के राज्य के अधिकारी नहीं होंगे।
हम परमेश्वर के राज्य में कैसे प्रवेश करते हैं?
“समय पूरा हो चुका है। परमेश्वर का राज्य निकट आ गया है। पश्चात्ताप करो और शुभ समाचार पर विश्वास करो।”
(17) तब उन्होंने आकर दोनों को शान्ति का शुभसमाचार सुनाया : आप लोगों को, जो दूर थे और उन लोगों को, जो निकट थे;
(18) क्योंकि उनके द्वारा हम दोनों एक ही आत्मा से प्रेरित हो कर पिता के पास पहुँच सकते हैं।
(19) आप लोग अब परदेशी अथवा प्रवासी नहीं रहे, बल्कि सन्तों के सह-नागरिक तथा परमेश्वर के परिवार के सदस्य बन गये हैं।
पूछिए
- परमेश्वर के राज्य में रहने के क्या लाभ हैं?
- यदि आप पहले से ही परमेश्वर के राज्य में नहीं रह रहे थे, तो क्या आप इसका हिस्सा बनना चाहेंगे?
आवेदन
- आज आप अपने जीवन में किन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं?
- परमेश्वर के वचन कि कौन सी सच्चाई को आप अपनी स्थिति पर लागू कर सकते हैं?
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद कि मैं आपके राज्य का हिस्सा हो सकता हूं। मैं प्रार्थना करता हूं कि आपका राज्य जैसे स्वर्ग में है वैसे मेरे जीवन और पृथ्वी पर अधिक से अधिक माप में आए।
प्रमुख पध
तुम सब से पहले परमेश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज करो तो ये सब वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएँगी।