यीशु एक सेवक बन गया, जिसने हमें बचाने के लिए अपना जीवन दिया और हमारे लिए एक उदाहरण स्थापित किया (मारकुस 10:45). हम वचन मे देखते हैं कि परमेश्वर दूसरों की सेवा करने को उच्च मूल्य देता है, और वह हमें उन उपहारों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करता है जो उसने हमें परमेश्वर और लोगों की सेवा करने के लिए दिए हैं।
क्योंकि मानव-पुत्र अपनी सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने और बहुतों के बदले उनकी मुक्ति के मूल्य में अपने प्राण देने आया है।”
यीशु सेवक और प्रभु
(5) आप लोग अपने मनोभावों को येशु मसीह के मनोभावों के अनुसार बना लें:
(6) यद्यपि मसीह परमेश्वर-स्वरूप थे, फिर भी उन्होंने परमेश्वर के तुल्य होने को अपने अधिकार में करने की वस्तु नहीं समझा;
(7) वरन् दास का स्वरूप ग्रहण कर उन्होंने अपने को रिक्त कर दिया, और वह मनुष्यों के समान बन गए। मानवीय रूप में प्रकट होकर
(8) मसीह ने अपने को दीन बना लिया और यहाँ तक आज्ञाकारी रहे कि मृत्यु, हाँ क्रूस की मृत्यु भी, स्वीकार की।
(9) इसलिए परमेश्वर ने उन्हें अत्यन्त उन्नत किया और उनको वह नाम प्रदान किया जो सब नामों में श्रेष्ठ है
यीशु धरती पर क्यों आए?
(1) पास्का (फसह) पर्व का दिन था। येशु जानते थे कि मेरी घड़ी आ गयी है और मुझे यह संसार छोड़ कर पिता के पास जाना है। अत: येशु ने अपनो से, जो इस संसार में थे, और जिनसे वह प्रेम करते आए थे, अंतिम सीमा तक प्रेम किया।
(2) येशु अपने शिष्यों के साथ भोजन कर रहे थे। शैतान शिमोन इस्करियोती के पुत्र यूदस के मन में येशु को पकड़वाने का विचार उत्पन्न कर चुका था।
(3) येशु यह जानते थे कि पिता ने सब कुछ उनके हाथों में दे दिया है और यह कि वह परमेश्वर के पास से आए हैं और परमेश्वर के पास जा रहे हैं।
(4) अत: वह भोजन से उठे। उन्होंने अपने बाहरी वस्त्र उतारे और अपनी कमर में अंगोछा बाँध लिया।
(5) तब वह परात में पानी भर कर अपने शिष्यों के पैर धोने और कमर में बँधे अंगोछे से उन्हें पोंछने लगे।
(6) जब वह सिमोन पतरस के पास आए, तब पतरस ने उन से कहा, “प्रभु! आप मेरे पैर धो रहे हैं?”
(7) येशु ने उत्तर दिया, “तुम अभी नहीं समझते कि मैं क्या कर रहा हूँ। बाद में समझोगे।”
(8) पतरस ने कहा, “मैं आप को अपने पैर कभी नहीं धोने दूँगा।” येशु ने उससे कहा, “यदि मैं तुम्हें नहीं धोऊंगा, तो तुम्हारा मेरे साथ कोई भाग नहीं होगा।”
(9) इस पर सिमोन पतरस ने उनसे कहा, “प्रभु! तो मेरे पैर ही नहीं, मेरे हाथ और सिर भी धो दीजिए।”
(10) येशु ने उत्तर दिया, “जो स्नान कर चुका है, उसे पैर के अतिरिक्त और कुछ धोने की आवश्यकता नहीं। वह पूर्ण रूप से शुद्ध है। तुम लोग शुद्ध हो, किन्तु सब-के-सब नहीं।”
(11) वह जानते थे कि कौन उनके साथ विश्वासघात करेगा। इसलिए उन्होंने कहा, “तुम सब-के-सब शुद्ध नहीं हो।”
(12) जब येशु उन सब के पैर धो चुके, तब वह अपने वस्त्र पहन कर फिर बैठ गये और उन से बोले, “क्या तुम समझे कि मैंने तुम्हारे साथ क्या किया?
(13) तुम मुझे गुरु और प्रभु कहते हो और ठीक ही कहते हो, क्योंकि मैं वही हूँ।
(14) इसलिए यदि मैं, तुम्हारे प्रभु और गुरु ने तुम्हारे पैर धोये हैं, तो तुम्हें भी एक दूसरे के पैर धोने चाहिए।
(15) मैंने तुम्हें एक उदाहरण दिया है, जिससे जैसा मैंने तुम्हारे साथ किया है, वैसा ही तुम भी किया करो।
(16) मैं तुम से सच-सच कहता हूँ : सेवक अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता और न भेजा हुआ अपने भेजने वाले से।
(17) यदि तुम ये बातें जानते हो और इनके अनुसार आचरण करते हो तो तुम धन्य हो।
यीशु ने चेलों की सेवा कैसे की?
यीशु क्यों चाहता था कि उसके शिष्य इस उदाहरण का अनुसरण करें?
सेवा करना मूल्यवान क्यों है?
प्रेरितों 6:2-3 (HINDICL-BSI)
(2) इसलिए बारह प्रेरितों ने शिष्यों की सभा बुला कर कहा, “यह उचित नहीं है कि हम खिलाने-पिलाने की सेवा के लिए परमेश्वर का वचन सुनाना छोड़ दें।
(3) अत: भाई-बहिनो, आप लोग अपने बीच से सात सच्चरित्र पुरुषों को चुन लीजिए, जो पवित्र आत्मा और बुद्धि से परिपूर्ण हों। हम उन्हें इस कार्य के लिए नियुक्त करेंगे,
प्रेरितों 6:5-7 (HINDICL-BSI)
(5) यह बात समस्त सभा को अच्छी लगी। उन्होंने स्तीफनुस नामक व्यक्ति को, जो विश्वास तथा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण था, तथा फ़िलिप, प्रोखुरुस, निकानोर, तीमोन, परमिनास और अन्ताकिया-निवासी नवयहूदी निकोलास को चुना
(6) और उन्हें प्रेरितों के सामने उपस्थित किया। प्रेरितों ने प्रार्थना करने के बाद उन पर अपने हाथ रखे।
(7) परमेश्वर का वचन फैलता गया। यरूशलेम में शिष्यों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गई; और बहुत-से पुरोहितों ने इस विश्वास को स्वीकार कर लिया।
कुलुस्सियों 3:24 (HINDICL-BSI)
क्योंकि आप जानते हैं कि प्रभु पुरस्कार के रूप में आप को विरासत प्रदान करेगा। आप स्वामी अर्थात् मसीह के दास हैं।
(42) येशु ने शिष्यों को अपने पास बुला कर उनसे कहा, “तुम जानते हो कि जो संसार के अधिपति माने जाते हैं, वे अपनी प्रजा पर निरंकुश शासन करते हैं और उनके सत्ता-धारी उन पर अधिकार जताते हैं।
(43) किन्तु तुम में ऐसी बात नहीं होगी। जो तुम लोगों में बड़ा होना चाहता है, वह तुम्हारा सेवक बने
(44) और जो तुम में प्रधान होना चाहता है, वह सब का दास बने;
(45) क्योंकि मानव-पुत्र अपनी सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने और बहुतों के बदले उनकी मुक्ति के मूल्य में अपने प्राण देने आया है।”
क्या अच्छे सेवक अच्छे नेता बनते हैं?
हम कैसे सेवा कर सकते हैं?
परमेश्वर की
मारकुस 12:30 (HINDICL-BSI)
अपने प्रभु परमेश्वर को अपने सम्पूर्ण हृदय, सम्पूर्ण प्राण, सम्पूर्ण बुद्धि और सम्पूर्ण शक्ति से प्रेम करो।’
इफिसियों 3:7 (HINDICL-BSI)
परमेश्वर ने अपने सामर्थ्य के प्रभाव से मुझे यह कृपा प्रदान की कि मैं उस शुभसमाचार का सेवक बनूँ।
कुलुस्सियों 3:23-24 (HINDICL-BSI)
(23) आप लोग जो भी काम करें, मन लगा कर करें, मानो मनुष्यों के लिए नहीं, बल्कि प्रभु के लिए काम कर रहे हों;
(24) क्योंकि आप जानते हैं कि प्रभु पुरस्कार के रूप में आप को विरासत प्रदान करेगा। आप स्वामी अर्थात् मसीह के दास हैं।
लोगों की
मारकुस 12:31 (HINDICL-BSI)
दूसरी आज्ञा यह है, ‘अपने पड़ोसी को अपने समान प्रेम करो।’ इन से बड़ी कोई आज्ञा नहीं।”
1 कुरिन्थियों 9:19 (HINDICL-BSI)
सब लोगों से स्वतन्त्र होने पर भी मैंने अपने को सब का दास बना लिया है, जिससे मैं अधिक-से-अधिक लोगों को उद्धार के लिए प्राप्त कर सकूँ।
विश्वासियों की
इफिसियों 4:11-12 (HINDICL-BSI)
(11) उन्होंने कुछ लोगों को प्रेरित, कुछ को नबी, कुछ को शुभ समाचार-प्रचारक और कुछ को धर्मपाल तथा शिक्षक होने का वरदान दिया।
(12) इस प्रकार उन्होंने सेवा-कार्य के लिए सन्तों को योग्य बनाया, जिससे मसीह की देह का निर्माण उस समय तक होता रहे,
1 कुरिन्थियों 12:4-11 (HINDICL-BSI)
(4) वरदान तो नाना प्रकार के होते हैं; किन्तु आत्मा एक ही है।
(5) सेवाएँ तो नाना प्रकार की होती हैं, किन्तु प्रभु एक ही हैं।
(6) प्रभावशाली कार्य तो नाना प्रकार के होते हैं, किन्तु एक ही परमेश्वर द्वारा सब में सब कार्य सम्पन्न होते हैं।
(7) प्रत्येक व्यक्ति को सब के कल्याण के लिए आत्मा का प्रकाश मिलता है।
(8) किसी को आत्मा द्वारा प्रज्ञ का संदेश सुनाने का, किसी को उसी आत्मा द्वारा ज्ञान के शब्द बोलने का
(9) और किसी को उसी आत्मा द्वारा विश्वास करने का वरदान मिलता है। एक ही आत्मा किसी को रोगियों को स्वस्थ करने का,
(10) किसी को प्रभावशाली आश्चर्य कर्म करने का, किसी को नबूवत करने का, किसी को आत्माओं की परख करने का, किसी को भिन्न-भिन्न अध्यात्मिक भाषाओं में बोलने का और किसी को उन भाषाओं की व्याख्या करने का वरदान देता है।
(11) एक ही और वही आत्मा यह सब करता है। वह अपनी इच्छा के अनुसार प्रत्येक को अलग-अलग वरदान देता है।
प्रेरितों 6:1-7 (HINDICL-BSI)
(1) उन दिनों जब शिष्यों की संख्या बढ़ती जा रही थी, तो यूनानी-भाषी शिष्यों ने इब्रानी-भाषी शिष्यों के विरुद्ध यह शिकायत की कि दैनिक दान-वितरण में उनकी विधवाओं की उपेक्षा हो रही है।
(2) इसलिए बारह प्रेरितों ने शिष्यों की सभा बुला कर कहा, “यह उचित नहीं है कि हम खिलाने-पिलाने की सेवा के लिए परमेश्वर का वचन सुनाना छोड़ दें।
(3) अत: भाई-बहिनो, आप लोग अपने बीच से सात सच्चरित्र पुरुषों को चुन लीजिए, जो पवित्र आत्मा और बुद्धि से परिपूर्ण हों। हम उन्हें इस कार्य के लिए नियुक्त करेंगे,
(4) और हम लोग प्रार्थना में और वचन की सेवा में लगे रहेंगे।”
(5) यह बात समस्त सभा को अच्छी लगी। उन्होंने स्तीफनुस नामक व्यक्ति को, जो विश्वास तथा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण था, तथा फ़िलिप, प्रोखुरुस, निकानोर, तीमोन, परमिनास और अन्ताकिया-निवासी नवयहूदी निकोलास को चुना
(6) और उन्हें प्रेरितों के सामने उपस्थित किया। प्रेरितों ने प्रार्थना करने के बाद उन पर अपने हाथ रखे।
(7) परमेश्वर का वचन फैलता गया। यरूशलेम में शिष्यों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गई; और बहुत-से पुरोहितों ने इस विश्वास को स्वीकार कर लिया।
किन तरीकों से दूसरे लोगों ने आपकी सेवा की है?
दोस्त से पूछें
आप सेवा करने को अपने जीवन शैली मे कैसे शामिल कर सकते हैं?
परमेश्वर और दूसरों की सेवा करना आपके लिए कैसे आशीष का कारण रहा है?
आवेदन
परमेश्वर से आपके उपहारों को प्रकट करने के लिए कहें, और पूंछे कि जो उपहार उसने आपको दिए हैं उनसे आप कैसे दूसरों की सेवा कर सकते हैं। देखिये कि आप अपनी कलीसिया मे क्या सेवा कर सकते हैं और एक टीम में शामिल होइए।
मॉडल प्रार्थना
प्रभु यीशु, हमारी सेवा करने के लिए धरती पर आने के लिए और सेवा की मिसाल कायम करने के लिए धन्यवाद।
प्रमुख पध
किन्तु तुम में ऐसी बात नहीं होगी। जो तुम लोगों में बड़ा होना चाहता है, वह तुम्हारा सेवक बने