बढ़त
परमेश्वर ने हमें फलदायी होने के लिए बुलाया है। उसने हमे चुन लिया है, ताकि हम उसके फलदायी स्वभाव में बढ़ें। हमारे जीवन के लिए उसके उद्देश्यों को पूरा करें और उसके राज्य की वृद्धि हो। यह एक बड़ी चुनौती है लेकिन यह सबसे महत्वपूर्ण और पुरस्कृत चीज है जिसे हम अपने जीवन में प्राप्त कर सकते हैं।
फल उत्पन्न करना
(1) “मैं सच्ची दाखलता हूँ और मेरा पिता किसान है।
(2) वह उस डाली को, जो मुझ में नहीं फलती, काट देता है और उस डाली को, जो फलती है, छाँटता है, जिससे वह और भी अधिक फल उत्पन्न करे।
(3) उस वचन के कारण, जो मैंने तुम से कहा है, तुम शुद्ध हो चुके हो।
(4) तुम मुझ में रहो और मैं तुम में रहूँगा। जिस तरह डाली यदि दाखलता में न रहे स्वयं नहीं फल सकती, उसी तरह यदि तुम मुझ में न रहो तो तुम भी नहीं फल सकते।
(5) “मैं दाखलता हूँ और तुम डालियाँ हो। जो मुझ में रहता है और मैं उस में, वह बहुत फलता है; क्योंकि मुझ से अलग रह कर तुम कुछ भी नहीं रह सकते।
(6) यदि कोई मुझ में नहीं रहता, तो वह डाली की तरह फेंक दिया जाता है और सूख जाता है। लोग ऐसी सूखी डालियाँ बटोर लेते हैं और आग में झोंककर जला देते हैं।
(7) यदि तुम मुझ में रहो और मेरी शिक्षा तुम में बनी रहती है, तो चाहे जो माँगो, वह तुम्हारे लिए हो जाएगा।
(8) मेरे पिता की महिमा इसी में है कि तुम बहुत फल उत्पन्न करो। तभी तुम मेरे शिष्य होगे।
वह उस डाली को, जो मुझ में नहीं फलती, काट देता है और उस डाली को, जो फलती है, छाँटता है, जिससे वह और भी अधिक फल उत्पन्न करे।
शाखा का प्रत्येक भाग फलदायी होने के लिए परमेश्वर क्या करता है?
(4) तुम मुझ में रहो और मैं तुम में रहूँगा। जिस तरह डाली यदि दाखलता में न रहे स्वयं नहीं फल सकती, उसी तरह यदि तुम मुझ में न रहो तो तुम भी नहीं फल सकते।
(5) “मैं दाखलता हूँ और तुम डालियाँ हो। जो मुझ में रहता है और मैं उस में, वह बहुत फलता है; क्योंकि मुझ से अलग रह कर तुम कुछ भी नहीं रह सकते।
हम कैसे फलदायी बने रह सकते हैं?
मेरे पिता की महिमा इसी में है कि तुम बहुत फल उत्पन्न करो। तभी तुम मेरे शिष्य होगे।
हम पिता को कैसे महिमा दे सकते हैं और कैसे दिखाते हैं कि हम उनके शिष्य हैं?
फल बनाम फलरहित
निचे लिखे वचनों से फलदायी परिपूर्णता पर परमेश्वर के मूल्यों के बारे में हम क्या सीख सकते हैं?
लुका 13:6-9 (HINDICL-BSI)
(6) वह दूसरों के पाप से नहीं, बल्कि उनके सदाचरण से प्रसन्न होता है।
(7) वह सब कुछ ढाँक देता है, सब कुछ पर विश्वास करता है, सब कुछ की आशा करता और सब कुछ सह लेता है।
(8) नबूवतें जाती रहेंगी, अध्यात्म भाषाएँ मौन हो जायेंगी और ज्ञान मिट जायेगा, किन्तु प्रेम का कभी अन्त नहीं होगा;
(9) क्योंकि हमारा ज्ञान तथा हमारी नबूवत अपूर्ण हैं
मत्ती 21:19 (HINDICL-BSI)
उन्होंने मार्ग के किनारे अंजीर का एक पेड़ देखा। वह उसके पास आए। परन्तु उन्होंने उस में पत्तों को छोड़कर और कुछ नहीं पाया। येशु ने पेड़ से कहा, “अब से तुझ में फिर कभी फल न लगे।” और उसी क्षण अंजीर का वह पेड़ सूख गया।
(14) “स्वर्ग का राज्य उस मनुष्य के सदृश है, जिसने विदेश जाते समय अपने सेवकों को बुलाया और उन्हें अपनी सम्पत्ति सौंप दी।
(15) उसने प्रत्येक को उसकी योग्यता के अनुसार दिया : एक सेवक को सोने के पाँच सिक्के दूसरे को सोने के दो सिक्के और तीसरे को सोने का एक सिक्का दिया। इसके बाद वह विदेश चला गया।
(16) जिसे पाँच सिक्के मिले थे, उसने तुरन्त जा कर उनके साथ लेन-देन किया तथा और पाँच सिक्के कमा लिये।
(17) इसी तरह जिसे दो सिक्के मिले थे, उसने और दो सिक्के कमा लिये।
(18) लेकिन जिसे एक सिक्का मिला था, वह गया और उसने भूमि खोद कर अपने स्वामी का धन छिपा दिया।
(19) “बहुत समय बाद उन सेवकों के स्वामी ने लौट कर उन से लेखा लिया।
(20) जिसे पाँच सिक्के मिले थे, उसने और पाँच सिक्के ला कर कहा, ‘स्वामी! आपने मुझे पाँच सिक्के सौंपे थे। देखिए, मैंने और पाँच सिक्के कमाए।’
(21) उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘शाबाश, भले और ईमानदार सेवक! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्हें बहुत वस्तुओं पर अधिकार दूँगा। अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।’
(22) इसके बाद वह आया, जिसे दो सिक्के मिले थे। उसने कहा, ‘स्वामी! आपने मुझे दो सिक्के सौंपे थे। देखिए, मैंने और दो सिक्के कमाए।’
(23) उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘शाबाश, भले और ईमानदार सेवक! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्हें बहुत वस्तुओं पर अधिकार दूँगा। अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।’
(24) अन्त में वह आया, जिसे एक सिक्का मिला था। उसने कहा, ‘स्वामी! मुझे मालूम था कि आप कठोर व्यक्ति हैं। आपने जहाँ नहीं बोया, वहाँ काटते हैं और जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरते हैं।
(25) इसलिए मैं डर गया और मैंने जा कर आपका धन भूमि में छिपा दिया। देखिए, यह रहा आपका धन!’
(26) स्वामी ने उसे उत्तर दिया, ‘दुष्ट और आलसी सेवक! तुझे मालूम था कि मैंने जहाँ नहीं बोया, वहाँ काटता हूँ और जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरता हूँ,
(27) तो तुझे मेरा धन महाजनों के यहाँ जमा करना चाहिए था। तब मैं लौटने पर उसे ब्याज सहित ले लेता।
(28) सेवको! यह सिक्का इस से ले लो और जिसके पास दस सिक्के हैं, उस को दे दो;
(29) क्योंकि जिसके पास है, उस को और दिया जाएगा और उसके पास बहुत हो जाएगा; लेकिन जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा, जो उसके पास है।
(30) और इस निकम्मे सेवक को बाहर, अन्धकार में फेंक दो। वहाँ यह रोएगा और दाँत पीसेगा।
फलदायी क्यों बनें?
तुम ने मुझे नहीं चुना, बल्कि मैंने तुम्हें इसलिए चुना और नियुक्त किया कि तुम संसार में जाओ और फलवंत हो तथा तुम्हारा फल बना रहे, जिससे तुम मेरे नाम में पिता से जो कुछ माँगो, वह तुम्हें प्रदान करे।
हमें क्या करने के लिए नियुक्त किया गया है?
(10) अब्राहम ने ऐसा किया, क्योंकि वह उस पक्की नींव वाले नगर की प्रतीक्षा में थे, जिसका वास्तुकार तथा निर्माता परमेश्वर है।
(11) विश्वास के कारण ही आयु ढल जाने पर भी अब्राहम ने प्रजनन की शक्ति पाई-सारा भी बांझ थी-क्योंकि उनका विचार यह था कि जिसने प्रतिज्ञा की है, वह सच्चा है।
(12) और इसलिए एक मरणासन्न व्यक्ति, अर्थात् अब्राहम से वह सन्तति उत्पन्न हुई, जो आकाश के तारों की तरह असंख्य है और सागर-तट के बालू के कणों की तरह अगणित।
यह वचन उन लोगों को कैसे प्रोत्साहित कर सकता है जो बंजर महसूस कर रहे हैं?
(26) येशु ने उन से कहा, “परमेश्वर का राज्य उस मनुष्य के सदृश है, जो भूमि में बीज बोता है।
(27) वह रात-दिन सोता-जागता है। और उधर बीज उगता है और बढ़ता जाता है। वह नहीं जानता है कि यह कैसे हो रहा है।
(28) भूमि अपने आप फसल उत्पन्न करती है−पहले अंकुर, फिर बालें और तब बालों में पूर्ण विकसित दाने।
(29) फसल तैयार होते ही वह हँसिया चलाने लगता है, क्योंकि कटनी का समय आ गया है।”
यह दृष्टांत किस चीज़ की तस्वीर है?
हमें बीज बोते रहने के लिए प्रोत्साहित क्यों महसूस करना चाहिए?
जो बोने वाले को बीज और खाने वाले को भोजन देता है, वह आप को बोने के लिए बीज देगा, उसे बढ़ायेगा और आपकी धार्मिकता की अच्छी फ़सल उत्पन्न करेगा।
अब काटने वाला मजदूरी प्राप्त कर शाश्वत जीवन के लिए फल संग्रह कर रहा है, जिससे बोने वाला और काटने वाला, दोनों मिल कर आनन्द मनाएँ;
पूछिए
आपके लिए फलाहार का क्या मतलब है?
आवेदन
अपने जीवन में फल की वृद्धि देखने के लिए आपको क्या करने की आवश्यकता होगी?
प्रार्थना
परमेश्वर, मुझे फलदायी होने में मेरी मदद करें। धन्याद किbआप मुझे वो सब कुछ प्रदान करते हैं जो मुझे फलदायी होने के लिए चाहिए। मैं फल की बहुतायत रखना चाहता हूं ताकि मैं दूसरों को भी फलदायी बनने में मदद कर सकूं।
प्रमुख पध
जो बोने वाले को बीज और खाने वाले को भोजन देता है, वह आप को बोने के लिए बीज देगा, उसे बढ़ायेगा और आपकी धार्मिकता की अच्छी फ़सल उत्पन्न करेगा।