यीशु का पुनरुत्थान उनके भौतिक शरीर का परिवर्तन और महिमा है। यूनानी शब्द “अनास्तासिया” है, जिसका अर्थ है खड़े होना या उठना। पवित्र शाश्त्र में दर्ज यीशु के पुनरुत्थान के कई अचूक प्रमाण हैं।
क्या यीशु सचमुच मर गया?
कई धार्मिक और राजनीतिक उद्देश्यों ने यहूदियों और रोमन गवर्नर, पोंटियस पीलातुस को यीशु को मारने और यह सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित किया कि वह मृत और दफन रहे। इसलिए महत्वपूर्ण सुरक्षा और सावधानी बरती गई।
1. क्रूस पर चढ़ाकर मसीह को मार दिया गया। इस सलीबी मौत को जांचने के लिया किसे पहरेदार ठहराया गया था?
2. यीशु के शरीर को किसने पकड़ा था ?
(58) उसने पिलातुस के पास जाकर येशु का शव माँगा और पिलातुस ने आदेश दिया कि शव उसे सौंप दिया जाए।
3. यीशु के शरीर को किस चीज़ मे लपेटा गया था?
4. वह कब्र कहाँ खुदवाई थी? उसके सामने क्या लुढ़काया गया था?
\परंपरागत रूप से इन कब्रों के सामने जो पत्थर लुढ़के थे उनका वजन 2 टन था।
5. पीलातुस ने कब्र को कैसे सुरक्षित किया?
(63) और बोले, “श्रीमान! हमें याद है कि उस धोखेबाज ने अपने जीवनकाल में कहा था कि मैं तीन दिन बाद जी उठूँगा।
(64) इसलिए तीसरे दिन तक कबर की सुरक्षा का आदेश दिया जाए। कहीं ऐसा न हो कि उसके शिष्य उसे चुरा कर ले जाएँ और जनता से कहें कि वह मृतकों में से जी उठा है। यह पिछला धोखा तो पहले से भी बुरा होगा।”
(65) पिलातुस ने कहा, “तुम्हारे पास पहरेदार हैं। जाओ, और जैसा उचित समझो, सुरक्षा का प्रबन्ध करो।”
(66) वे चले गये और उन्होंने कबर के मुँह पर रखे पत्थर पर मुहर लगायी और पहरा बैठा कर कबर को सुरक्षित कर दिया।
परंपरागत रूप से एक रोमन गार्ड में सबसे प्रभावी लड़ाई इकाई के 16 पुरुष शामिल होते हैं। और कब्रों को आधिकारिक प्राधिकरण और रोम के हस्ताक्षर के साथ बंद कर दिया गया था। सील तोड़ने का मतलब था मौत।
यीशु के पुनरुत्थान के कई अविभाज्य प्रमाण
1. कब्र खाली थी।
(6) वह यहाँ नहीं हैं। वह जी उठे हैं, जैसा कि उन्होंने कहा था। आइए और वह जगह देख लीजिए, जहाँ वह रखे गये थे।
2. शव कब्र के कपड़ों से गायब था।
(7) और येशु के सिर पर जो अँगोछा बँधा था, वह पट्टियों के साथ नहीं, बल्कि दूसरी जगह तह किया हुआ अलग रखा हुआ है।
3. कई साक्षी
निम्नलिखित शास्त्रों से साक्षियों का नाम बताइए:
मारकुस 16:9 (HINDICL-BSI)
सप्ताह के प्रथम दिन प्रात:काल जी उठने पर येशु ने पहले मरियम मगदलेनी को दर्शन दिया। उसमें से उन्होंने सात भूतों को निकाला था।
योहन 20:11-18 (HINDICL-BSI)
(11) मरियम कबर के पास, बाहर रोती हुई खड़ी रही। उसने रोते-रोते झुक कर कबर के भीतर दृष्टि डाली
(12) और जहाँ येशु का शरीर रखा हुआ था, वहाँ श्वेत वस्त्र पहने दो स्वर्गदूतों को बैठा हुआ देखा : एक को सिरहाने और दूसरे को पैताने।
(13) दूतों ने उस से कहा, “हे महिला! आप क्यों रो रही हैं?” उसने उत्तर दिया, “वे मेरे प्रभु को उठा ले गये हैं और मैं नहीं जानती कि उन्होंने उन को कहाँ रखा है।”
(14) वह यह कह कर मुड़ी और उसने येशु को वहाँ खड़े हुए देखा, किन्तु वह उन्हें पहचान नहीं सकी कि वह येशु हैं।
(15) येशु ने उससे कहा, “हे महिला! आप क्यों रो रही हैं? आप किसे ढूँढ़ रही हैं?” मरियम ने उन्हें माली समझा और यह कहा, “महोदय! यदि आप उन्हें उठा ले गये हैं, तो मुझे बता दीजिए कि आपने उन्हें कहाँ रखा है और मैं उन्हें ले जाऊंगी।”
(16) इस पर येशु ने उससे कहा, “मरियम!” उसने मुड़ कर इब्रानी में उनसे कहा, “रब्बोनी”, अर्थात् “गुरुवर”।
(17) येशु ने उससे कहा, “चरणों से लिपट कर मुझे मत रोको। मैं अब तक पिता के पास, ऊपर नहीं गया हूँ। मेरे भाइयों के पास जाओ, और उनसे यह कहो कि मैं अपने पिता और तुम्हारे पिता, अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास ऊपर जा रहा हूँ।”
(18) मरियम मगदलेनी ने जा कर शिष्यों को यह संदेश दिया, “मैंने प्रभु को देखा है और उन्होंने मुझ से ये बातें कही हैं।”
लूकस 24:10 (HINDICL-BSI)
जिन्होंने प्रेरितों से ये बातें कहीं, वे मरियम मगदलेनी, योअन्ना, और याकूब की माता मरियम तथा उनके साथ की अन्य स्त्रियाँ थीं।
लूकस 24:34 (HINDICL-BSI)
जो यह कह रहे थे, “प्रभु सचमुच जी उठे हैं और सिमोन को दिखाई दिये हैं।”
1 कुरिन्थियों 15:5 (HINDICL-BSI)
वह कैफा को और बाद में बारहों को दिखाई दिये।
मारकुस 16:12-13 (HINDICL-BSI)
(12) इसके पश्चात् उनमें से दो शिष्य किसी गाँव को जा रहे थे। येशु ने उन्हें मार्ग में भिन्न रूप में दर्शन दिया।
(13) उन्होंने लौट कर शेष शिष्यों को यह समाचार सुनाया, किन्तु शिष्यों को उन दोनों पर भी विश्वास नहीं हुआ।
लूकस 24:13-35 (HINDICL-BSI)
(13-14) उसी दिन उनमें से दो शिष्य इन सब घटनाओं पर बातें करते हुए इम्माउस नामक गाँव जा रहे थे। वह यरूशलेम से कोई दस किलोमीटर दूर है।
(15) वे आपस में बातचीत और विचार-विमर्श कर ही रहे थे कि येशु स्वयं आ कर उनके साथ हो लिये,
(16) परन्तु शिष्यों की आँखें उन्हें पहचानने में असमर्थ रहीं।
(17) येशु ने उन से कहा, “आप लोग राह चलते किस विषय पर बातचीत कर रहे हैं?” वे उदास खड़े रह गये।
(18) तब उन में एक, जिसका नाम िक्लयुपास था, बोला, “क्या यरूशलेम में केवल आप ही एक ऐसे प्रवासी हैं, जो यह नहीं जानते कि वहाँ इन दिनों क्या-क्या हुआ है?”
(19) येशु ने उन से कहा, “क्या हुआ है?” उन्होंने उत्तर दिया, “बात येशु नासरी की है। वह परमेश्वर और समस्त जनता की दृष्टि में कर्म और वचन के शक्तिशाली नबी थे।
(20) हमारे महापुरोहितों और शासकों ने उन्हें प्राणदण्ड दिलाया और क्रूस पर चढ़वाया।
(21) हम तो आशा करते थे कि वही इस्राएल का उद्धार करेंगे। इन सब बातों के अतिरिक्त एक बात और : यह आज से तीन दिन पहले की घटना है।
(22) हम में से कुछ स्त्रियों ने हमें बड़े अचम्भे में डाल दिया है। वे बड़े सबेरे कबर पर गयीं
(23) और उन्हें येशु का शव नहीं मिला। उन्होंने लौट कर कहा कि उन्हें स्वर्गदूत भी दिखाई दिये, जिन्होंने यह बताया कि येशु जीवित हैं।
(24) इस पर हमारे कुछ साथी कबर पर गये और उन्होंने सब कुछ वैसा ही पाया, जैसा स्त्रियों ने कहा था; परन्तु उन्होंने येशु को नहीं देखा।”
(25) तब येशु ने उन से कहा, “निर्बुद्धियो! नबियों ने जो कुछ कहा है, तुम उस पर विश्वास करने में कितने मन्दमति हो!
(26) क्या यह अनिवार्य नहीं था कि मसीह यह सब दु:ख भोगें और इस प्रकार अपनी महिमा में प्रवेश करें?”
(27) तब येशु ने मूसा एवं सब नबियों से आरम्भ कर संपूर्ण धर्मग्रन्थ में अपने विषय में लिखी बातों की व्याख्या उनसे की।
(28) इतने में वे उस गाँव के पास पहुँच गये, जहाँ वे जा रहे थे। येशु ने ऐसा दिखाया कि वह आगे जाना चाहते हैं।
(29) किन्तु शिष्यों ने यह कह कर उन से आग्रह किया, “हमारे साथ रह जाइए। संध्या हो रही है और अब दिन ढल चुका है।” वह उनके साथ ठहरने के लिए भीतर गये।
(30) जब येशु उनके साथ भोजन करने बैठे, तब उन्होंने रोटी ली, आशिष माँगी और वह रोटी तोड़ कर उन्हें देने लगे।
(31) इस पर शिष्यों की आँखें खुल गयीं और उन्होंने येशु को पहचान लिया … किन्तु येशु उनकी दृष्टि से ओझल हो गये।
(32) तब शिष्यों ने एक दूसरे से कहा, “हमारे हृदय कितने उद्दीप्त हो रहे थे, जब वह मार्ग में हम से बातें कर रहे थे और हमें धर्मग्रन्थ समझा रहे थे!”
(33) वे उसी समय उठे और यरूशलेम लौट गये। वहाँ उन्होंने ग्यारहों और उनके साथियों को एकत्र पाया,
(34) जो यह कह रहे थे, “प्रभु सचमुच जी उठे हैं और सिमोन को दिखाई दिये हैं।”
(35) तब दोनों शिष्यों ने भी बताया कि मार्ग में क्या-क्या हुआ और उन्होंने येशु को रोटी तोड़ते समय कैसे पहचाना।
(20) और यह कह कर उन्हें अपने हाथ और अपनी पसली दिखायी। प्रभु को देख कर शिष्य आनन्दित हो उठे।
(21) येशु ने उन से फिर कहा, “तुम्हें शान्ति मिले! जिस प्रकार पिता ने मुझे भेजा है, उसी प्रकार मैं तुम्हें भेजता हूँ।”
(22) यह कह कर येशु ने उन पर श्वास फूँका, और कहा, “पवित्र आत्मा को ग्रहण करो!
(23) तुम जिन लोगों के पाप क्षमा करोगे, वे क्षमा किए गए और जिन लोगों के पाप क्षमा नहीं करोगे, वे क्षमा नहीं होंगे।”
(24) किन्तु जब येशु आए थे, उस समय बारहों में से एक, थोमस, जो दिदिमुस कहलाता था, उनके साथ नहीं था।
(27) तब उन्होंने थोमस से कहा, “अपनी उँगली यहाँ रखो। देखो, ये मेरे हाथ हैं। अपना हाथ बढ़ा कर मेरी पसली में डालो और अविश्वासी नहीं, बल्कि विश्वासी बनो।”
(28) थोमस ने उत्तर दिया, “हे मेरे प्रभु! हे मेरे परमेश्वर!”
(29) येशु ने उससे कहा, “क्या तुम इसलिए विश्वास करते हो कि तुम ने मुझे देखा है? धन्य हैं वे जिन्होंने मुझे नहीं देखा, तो भी विश्वास करते हैं!”
(2) सिमोन पतरस, थोमस जो दिदिमुस कहलाता था, नतनएल जो गलील प्रदेश के काना नगर का निवासी था, जबदी के दो पुत्र और येशु के दो अन्य शिष्य एकत्र थे।
(3) सिमोन पतरस ने उन से कहा, “मैं मछली पकड़ने जा रहा हूँ।” वे उससे बोले, “हम भी तुम्हारे साथ चलते हैं।” वे चल पड़े और नाव पर सवार हुए, किन्तु उस रात उन्हें कुछ नहीं मिला।
(4) सबेरा हो ही रहा था कि येशु तट पर आ खड़े हुए; किन्तु शिष्य उन्हें नहीं पहचान सके कि वह येशु हैं।
(5) येशु ने उनसे कहा, “बच्चो! क्या तुम्हारे पास खाने को कुछ है?” उन्होंने उत्तर दिया, “कुछ नहीं।”
(6) इस पर येशु ने उनसे कहा, “नाव की दाहिनी ओर जाल डालो, तो तुम्हें मिलेगा।” उन्होंने जाल डाला और इतनी मछलियाँ फँस गयीं कि वे जाल नहीं निकाल सके।
(7) तब उस शिष्य ने, जिस से येशु प्रेम करते थे, पतरस से कहा, “यह तो प्रभु हैं।” जब सिमोन पतरस ने सुना कि यह प्रभु हैं, तो उसने कमर में अपना अंगरखा कस लिया, क्योंकि वह वस्त्र नहीं पहने था; और वह झील में कूद पड़ा।
(8) दूसरे शिष्य मछलियों से भरा जाल खींचते हुए नाव पर आए। वे किनारे से अधिक दूर नहीं, केवल सौ मीटर दूर थे।
(9) उन्होंने तट पर उतर कर वहाँ कोयले की आग पर रखी हुई मछली और रोटी देखी।
(10) येशु ने उनसे कहा, “तुम ने अभी जो मछलियाँ पकड़ी हैं, उनमें से कुछ ले आओ।”
(11) सिमोन पतरस नाव पर चढ़कर जाल किनारे खींच लाया। उस में एक सौ तिरपन बड़ी-बड़ी मछलियाँ थीं और इतनी मछलियाँ होने पर भी जाल नहीं फटा था।
(12) येशु ने उन से कहा, “आओ, जलपान कर लो।” शिष्यों में किसी को भी येशु से यह पूछने का साहस नहीं हुआ कि आप कौन हैं क्योंकि वे जानते थे कि वह प्रभु हैं।
(13) येशु आए। उन्होंने रोटी ले कर उन्हें दी और इसी तरह मछली भी।
(14) इस प्रकार मृतकों में से जी उठने के पश्चात् यह तीसरी बार येशु ने शिष्यों को दर्शन दिया।
(15) जलपान के बाद येशु ने सिमोन पतरस से कहा, “सिमोन, योहन के पुत्र! क्या इनकी अपेक्षा तुम मुझ से अधिक प्रेम करते हो?” उसने उन्हें उत्तर दिया, “जी हाँ, प्रभु! आप जानते हैं कि मैं आप को प्यार करता हूँ।” उन्होंने पतरस से कहा, “मेरे मेमनों को चराओ।”
(16) येशु ने दूसरी बार उससे कहा, “सिमोन, योहन के पुत्र! क्या तुम मुझ से प्रेम करते हो?” उसने उत्तर दिया, “जी हाँ, प्रभु! आप जानते हैं कि मैं आप को प्यार करता हूँ।” उन्होंने पतरस से कहा, “मेरी भेड़ों की रखवाली करो।”
(17) येशु ने तीसरी बार उससे कहा, “सिमोन, योहन के पुत्र! क्या तुम मुझे प्यार करते हो?” पतरस को इससे दु:ख हुआ कि उन्होंने तीसरी बार उससे यह पूछा, “क्या तुम मुझे प्यार करते हो?”। उसने येशु से कहा, “प्रभु! आप तो सब कुछ जानते हैं। आप जानते हैं कि मैं आप को प्यार करता हूँ।” येशु ने उससे कहा, “मेरी भेड़ों को चराओ।
(18) “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ : जब तुम युवा थे तब तुम स्वयं अपनी कमर कस कर जहाँ चाहते थे, वहाँ घूमते-फिरते थे। किन्तु जब तुम वृद्ध होगे, तब तुम अपने हाथ फैलाओगे और दूसरा व्यक्ति तुम्हारी कमर कस कर तुम्हें वहाँ ले जाएगा, जहाँ तुम जाना नहीं चाहते।”
(19) इन शब्दों से येशु ने संकेत किया कि किस प्रकार की मृत्यु से पतरस परमेश्वर की महिमा करेगा। येशु ने अन्त में पतरस से कहा, “मेरा अनुसरण करो।”
(20) पतरस ने मुड़ कर उस शिष्य को पीछे-पीछे आते देखा, जिससे येशु प्रेम करते थे और जिसने भोजन के समय उनकी छाती पर झुक कर पूछा था, “प्रभु! वह कौन है, जो आप को पकड़वाएगा?”
(21) पतरस ने उसे देख कर येशु से पुछा, “प्रभु! इसका क्या होगा?”
(22) येशु ने उसे उत्तर दिया, “यदि मेरी इच्छा हो कि यह मेरे आने तक रहे, तो इस से तुम्हें क्या? तुम मेरा अनुसरण करो।”
(23) यह बात भाई-बहिनों में फैल गयी कि वह शिष्य नहीं मरेगा। परन्तु येशु ने यह नहीं कहा था कि “यह नहीं मरेगा”, बल्कि यह कि “यदि मेरी इच्छा हो कि यह मेरे आने तक रहे, तो इससे तुम्हें क्या?”
(7) बाद में वह याकूब को और फिर सब प्रेरितों को दिखाई दिये।
मत्ती 28:16-17 (HINDICL-BSI)
(16) तब ग्यारह शिष्य गलील प्रदेश में उस पहाड़ी पर गये, जहाँ जाने का येशु ने उन्हें आदेश दिया था।
(17) उन्होंने येशु को देख कर उनकी वंदना की; किन्तु किसी-किसी को सन्देह भी हुआ।
मारकुस 16:19 (HINDICL-BSI)
प्रभु येशु अपने शिष्यों से बातें करने के बाद स्वर्ग में उठा लिये गये और परमेश्वर की दाहिनी ओर विराजमान हो गये।
लूकस 24:50 (HINDICL-BSI)
इसके पश्चात् येशु शिष्यों को बेतनियाह गाँव तक ले गये और उन्होंने अपने हाथ उठा कर उन्हें आशीर्वाद दिया।
प्रेरितों 1:3-12 (HINDICL-BSI)
(3) येशु ने अपने दु:ख-भोग के बाद उन प्रेरितों के संमुख बहुत-से प्रमाण प्रस्तुत किए कि वह जीवित हैं। वह चालीस दिन तक उन्हें दिखाई देते रहे और उनसे परमेश्वर के राज्य के विषय में बात करते रहे।
(4) येशु ने प्रेरितों के साथ भोजन करते समय उन्हें आज्ञा दी कि वे यरूशलेम नगर नहीं छोड़ें, बल्कि पिता ने जो प्रतिज्ञा की है, उसकी प्रतीक्षा करते रहें। उन्होंने कहा, “मैंने तुम लोगों को उस प्रतिज्ञा के विषय में बता दिया है।
(5) योहन ने तो जल से बपतिस्मा दिया था, परन्तु थोड़े ही दिनों बाद तुम्हें पवित्र आत्मा से बपतिस्मा दिया जायेगा।”
(6) जब प्रेरित येशु के साथ एकत्र थे, तब उन्होंने यह प्रश्न किया, “प्रभु! क्या आप इस समय इस्राएलियों का राज्य पुन: स्थापित करेंगे?”
(7) येशु ने उत्तर दिया, “पिता ने जो काल और निश्चित समय अपने निजी अधिकार में रखे हैं, उन्हें जानना तुम्हारा काम नहीं है।
(8) किन्तु पवित्र आत्मा तुम पर उतरेगा और तुम्हें सामर्थ्य प्रदान करेगा और तुम यरूशलेम में, समस्त यहूदा और सामरी प्रदेशों में तथा पृथ्वी के अन्तिम छोर तक मेरे साक्षी होगे।”
(9) इतना कहने के पश्चात् येशु उनके देखते-देखते ऊपर उठा लिये गये और एक बादल ने उन्हें शिष्यों की आँखों से ओझल कर दिया।
(10) येशु के आरोहण के समय प्रेरित आकाश की ओर एकटक देख रहे थे। तब उज्ज्वल वस्त्र पहने दो पुरुष उनके पास अचानक आ खड़े हुए और
(11) बोले, “गलीली पुरुषो! आप खड़े-खड़े आकाश की ओर क्यों देख रहे हो? यही येशु, जो आप के बीच से स्वर्ग में उठा लिये गये हैं, उसी तरह फिर आयेंगे, जिस तरह आप लोगों ने उन्हें स्वर्ग की ओर जाते देखा है।”
(12) प्रेरित जैतून नामक पहाड़ से यरूशलेम लौटे। यह पहाड़ यरूशलेम के निकट, एक विश्राम-दिवस की यात्रा की दूरी पर है।
4. बड़ी चट्टान लुढ़क गई थी।
5. यीशु के दुश्मन पुनरुत्थान से इनकार नहीं करते थे।
(12) महापुरोहितों ने धर्मवृद्धों से मिल कर परामर्श किया और सैनिकों को एक मोटी रकम देकर कहा,
(13) “लोगों से कहना कि रात को जब हम सोये हुए थे, तो येशु के शिष्य आए और उसे चुरा ले गये।
(14) यदि यह बात राज्यपाल के कान में पड़ गयी, तो हम उन्हें समझा देंगे और तुम्हारे लिए चिन्ता की कोई बात न होगी।”
(15) पहरेदारों ने रुपया ले लिया और वैसा ही किया, जैसा उन्हें सिखाया गया था। यही कहानी फैल गयी और अब तक यहूदी लोगों में प्रचलित है।
6. शिष्यों का बदला हुआ जीवन।
पूछिए
क्या आपके पास यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान के बारे में कोई प्रश्न है?
आवेदन
यह जानते हुए कि यीशु मरे हुओं में से जी उठे हैं, आप प्रत्येक दिन आत्मविश्वास के साथ और बिना डरे कैसे जी सकते हैं?
मॉडल प्रार्थना
प्रभु यीशु, मेरे लिए क्रूस पर मरने के लिए धन्यवाद। मैं आप में आनन्दित हूं क्योंकि आपने एक ही बार मे हमेशा के लिए मृत्यु पर विजय प्राप्त की।
प्रमुख पध
किन्तु उसने उनसे कहा, “आश्चर्य-चकित मत हो! आप लोग नासरत-निवासी येशु को ढूँढ़ रही हैं, जो क्रूस पर चढ़ाए गये थे। वह जी उठे हैं। वह यहाँ नहीं हैं। देखिए, यही जगह है, जहाँ उन्होंने उनको रखा था।