(1) जब येशु मन्दिर से निकल कर जा रहे थे, तब उनके शिष्य उनके पास आए और उन्होंने मन्दिर की इमारतों की ओर उनका ध्यान आकर्षित किया।
(2) येशु ने उनसे कहा, “तुम यह सब देख रहे हो न? मैं तुम से सच कहता हूँ, यहाँ एक पत्थर पर दूसरा पत्थर पड़ा नहीं रहेगा − सब ध्वस्त हो जाएगा।”
(3) जब येशु जैतून पहाड़ पर बैठे थे, तब शिष्य एकान्त में उनके पास आए और बोले, “हमें बताइए, यह कब होगा? आपके आगमन और युग के अन्त का चिह्न क्या होगा?”
(4) येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “सावधान रहो। तुम्हें कोई नहीं बहकाए।
(5) बहुत-से लोग मेरे नाम में आएँगे और कहेंगे : ‘मैं मसीह हूँ’, और वे बहुतों को बहका देंगे।
(6) तुम युद्धों की चर्चा सुनोगे और युद्धों के बारे में अफवाहें सुनोगे। पर देखो, इस से मत घबराना, क्योंकि ऐसा होना अनिवार्य है। परन्तु यही अन्त नहीं है।
(7) जाति के विरुद्ध जाति और राज्य के विरुद्ध राज्य उठ खड़ा होगा। जहाँ-तहाँ अकाल पड़ेंगे और भूकम्प आएँगे।
(8) यह सब मानो प्रसव-पीड़ा का आरम्भ मात्र होगा।
(9) “उस समय लोग तुम्हें पकड़वा कर घोर यन्त्रणा देंगे और मार डालेंगे। मेरे नाम के कारण सब जातियाँ तुम से घृणा करेंगी।
(10) उन दिनों बहुत-से विश्वासियों के विश्वास का पतन होगा! वे एक दूसरे को पकड़वाएँगे और एक दूसरे से घृणा करेंगे।
(11) बहुत-से झूठे नबी प्रकट होंगे और बहुतों को बहकाएँगे।
(12) अधर्म बढ़ने से लोगों में प्रेम-भाव घट जाएगा,
(13) किन्तु जो अन्त तक स्थिर रहेगा, वही बचाया जाएगा।
(14) राज्य का यह शुभ समाचार सारे संसार में सुनाया जाएगा, जिससे सब राष्ट्रों को इसकी साक्षी मिले; और तब अन्त आ जाएगा।
(15) “इसलिए जब तुम पवित्र स्थान में ‘विनाशकारी घृणित वस्तु’ खड़ी हुई देखोगे, जिसकी चर्चा नबी दानिएल ने की है − पढ़ने वाला इसे समझ ले −
(16) तो, जो लोग यहूदा प्रदेश में हों वे पहाड़ों पर भाग जाएँ;
(17) जो छत पर हो, वह अपने घर का सामान लेने नीचे न उतरे;
(18) जो खेत में हो, वह अपनी चादर ले आने के लिए पीछे न लौटे।
(19) उन स्त्रियों के लिए शोक, जो उन दिनों गर्भवती या दूध पिलाती होंगी!
(20) प्रार्थना करो कि तुम लोगों को शीतकाल में अथवा विश्राम दिवस को भागना न पड़े;
(21) क्योंकि उन दिनों ऐसा घोर संकट होगा, जैसा सृष्टि के आरम्भ से अब तक न कभी हुआ है और न कभी होगा।
(22) यदि वे दिन घटाये न जाते, तो कोई भी प्राणी नहीं बचता; किन्तु चुने हुए लोगों के कारण वे दिन घटा दिये जाएँगे।
(23) “यदि उस समय कोई तुम से कहे, ‘देखो! मसीह यहाँ हैं’, अथवा ‘वह वहाँ हैं’, तो विश्वास नहीं करना;
(24) क्योंकि झूठे मसीह तथा झूठे नबी प्रकट होंगे और ऐसे महान चिह्न तथा चमत्कार दिखाएँगे कि यदि सम्भव हो, तो वे चुने हुए लोगों को भी बहका दें।
(25) देखो, मैंने तुम्हें पहले ही सचेत कर दिया है।
(26) “यदि वे तुम से कहें, ‘देखो, वह निर्जन प्रदेश में हैं’, तो वहाँ नहीं जाना; अथवा, ‘देखो, वह यहाँ कोठरी में हैं’, तो विश्वास नहीं करना;
(27) क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकल कर पश्चिम तक चमकती है, वैसे ही मानव-पुत्र का आगमन होगा।
(28) “जहाँ कहीं लाश होगी, वहाँ गिद्ध इकट्ठे हो जाएँगे।
(29) “उन दिनों के संकट के तुरन्त बाद सूर्य अन्धकारमय हो जाएगा, चन्द्रमा प्रकाश नहीं देगा, तारे आकाश से गिर जाएँगे और आकाश की शक्तियाँ विचलित हो जाएँगी।
(30) तब आकाश में मानव-पुत्र का चिह्न दिखाई देगा। पृथ्वी की समस्त जातियाँ छाती पीटेंगी और मानव-पुत्र को सामर्थ्य और अपार महिमा के साथ आकाश के बादलों पर आते हुए देखेंगी।
(31) वह तुरही की तुमुल ध्वनि के साथ अपने दूतों को भेजेगा और वे चारों दिशाओं से, विश्व के कोने-कोने से, उसके चुने हुए लोगों को एकत्र करेंगे।
(32) “अंजीर के पेड़ से यह शिक्षा लो : जैसे ही उसकी टहनियाँ कोमल बन जाती हैं और उन में अंकुर फूटने लगते हैं, तो तुम जान जाते हो कि ग्रीष्मकाल निकट है।
(33) इसी तरह जब तुम ये सब घटनाएँ देखोगे, तब जान लेना कि वह निकट है, वरन् द्वार पर ही है।
(34) मैं तुम से सच कहता हूँ कि इस पीढ़ी का अन्त तब तक नहीं होगा जब तक ये सब बातें घटित नहीं हो जाएँगी।
(35) आकाश और पृथ्वी टल जाएँ, तो टल जाएँ, परन्तु मेरे शब्द कदापि नहीं टल सकते।
(36) “उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता − न स्वर्गदूत और न पुत्र। यह केवल पिता ही जानता है।
(37) “जैसा नूह के दिनों में हुआ था, वैसा ही मानव-पुत्र के आगमन के समय होगा।
(38) जलप्रलय होने के पहले, नूह के जलयान पर चढने के दिन तक, लोग खाते-पीते और शादी-ब्याह करते रहे।
(39) जब तक जलप्रलय नहीं आया और उसने सब को बहा नहीं दिया, तब तक किसी को इसका कुछ भी पता नहीं था। मानव-पुत्र के आगमन के समय वैसा ही होगा।
(40) उस समय दो पुरुष खेत में होंगे − एक उठा लिया जाएगा और दूसरा छोड़ दिया जाएगा।
(41) दो स्त्रियाँ चक्की पीसती होंगी − एक उठा ली जाएगी और दूसरी छोड़ दी जाएगी।
(42) “इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारे प्रभु किस दिन आएँगे।
(43) यह अच्छी तरह समझ लो : यदि घर के स्वामी को मालूम होता कि चोर रात के किस पहर आएगा, तो वह जागता रहता और अपने घर में सेंध लगने नहीं देता।
(44) इसलिए तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी की तुम कल्पना भी नहीं करते, उसी घड़ी मानव-पुत्र आ जाएगा।
(45) “वह विश्वास-पात्र और बुद्धिमान सेवक कौन है, जिसे उसके स्वामी ने अपने घर के अन्य सेवक-सेविकाओं पर नियुक्त किया है, ताकि वह निश्चित् समय पर उन्हें भोजन सामग्री बाँटा करे?
(46) धन्य है वह सेवक, जिसका स्वामी लौटने पर उसे ऐसा करता हुआ पाए!
(47) मैं तुम से सच कहता हूँ : वह उसे अपनी सारी सम्पत्ति पर अधिकारी नियुक्त करेगा।
(48) “परन्तु यदि वह दुष्ट सेवक अपने मन में कहे, ‘मेरा स्वामी देर कर रहा है।’
(49) और वह अपने साथी-सेवकों को पीटने लगे और शराबियों के साथ खाए-पिये,
(50) तो उस सेवक का स्वामी ऐसे दिन आएगा, जब वह उसकी प्रतीक्षा नहीं कर रहा होगा और ऐसी घड़ी, जिसे वह नहीं जानता होगा।
(51) तब स्वामी उसे कठोर दंड देगा। इस प्रकार उसका अन्त वही होगा जो ढोंगियों का होता है। वहाँ वह रोएगा और दाँत पीसेगा।