परमेश्वर के लिए अपने जीवन को अर्पण करना
अपने आप को अर्पण करने का मतलब है एक विशेष उद्देश्य के लिए “पवित्र होना” या “अलग होना” परमेश्वर के लिए अलग से जीवन जीने से ज्यादा लाभप्रद कुछ नहीं है। परमेश्वर को पहला स्थान देना और हर दिन अपने दिल में परमेश्वर की योजना के साथ जीने से हमारे जीवन को उद्देश्य और महत्व मिलता है।
परमेश्वर को पहला स्थान देना
अलग होना
हम कैसे अलग किये गए हैं?
मैं उनकी आँखें खोलने के लिए, उन्हें अन्धकार से ज्योति की ओर उन्मुख करने के लिए, अर्थात् शैतान की शक्ति से विमुख हो परमेश्वर की ओर अभिमुख करने के लिए, तुझे उनके पास भेज रहा हूं, जिससे वे मुझ में विश्वास करने के कारण अपने पापों की क्षमा पाएं और पवित्र किए हुए भक्तों के बीच स्थान प्राप्त कर सकें।’
(20) किसी भी बड़े घर में न केवल सोने और चांदी के, बल्कि लकड़ी और मिट्टी के भी पात्र पाये जाते हैं। कुछ पात्र ऊंचे प्रयोजन के लिए हैं और कुछ साधरण प्रयोजन के लिए।
(21) जो मनुष्य सब प्रकार के दूषण अपने से दूर करेगा, वह एक ऐसा पात्र बनेगा, जो ऊंचे प्रयोजन के लिए है, अर्थात् जो पवित्र है, गृह-स्वामी के योग्य और हर प्रकार के सत्कार्य के लिए उपयुक्त है।
(22) तुम युवावस्था की वासनाओं से दूर रहो और उन सब के साथ, जो शुद्ध हृदय से प्रभु का नाम लेते हैं, धार्मिकता, विश्वास, प्रेम तथा शान्ति की साधना करते रहो।
कोई मूर्ति या प्रतिमा नहीं
परमेश्वर क्यों नहीं चाहते कि हमारे जीवन में अन्य मूर्तियाँ हों?
(3) तू मेरे अतिरिक्त किसी और को ईश्वर नहीं मानना।
(4) ‘तू अपने लिए कोई मूर्ति न बनाना और न किसी प्राणी अथवा वस्तु की आकृति बनाना, जो ऊपर आकाश में अथवा नीचे धरती पर या धरती के नीचे जल में है।
(5) तू झुककर उनकी वन्दना न करना और न उनकी सेवा करना; क्योंकि मैं तुम्हारा प्रभु परमेश्वर, ईष्र्यालु ईश्वर हूं। जो मुझसे घृणा करते हैं, उनके अधर्म का दण्ड मैं तीसरी और चौथी पीढ़ी तक उनकी संतान को देता रहता हूं।
(6) परन्तु मुझ से प्रेम करने वाले और मेरी आज्ञा का पालन करने वाले व्यक्तियों पर मैं हजार पीढ़ियों तक करुणा करता हूं।
केवल परमेश्वर की उपासना करने वालों के लिए क्या वादा था?
(6) शैतान उनसे बोला, “मैं आप को इन सब राज्यों का अधिकार और इनका वैभव दे दूँगा। यह सब मुझे सौंपा गया है और मैं जिस को चाहता हूँ, उस को यह देता हूँ।
(7) यदि आप मेरी आराधना करें, तो यह सब आप का हो जाएगा।”
(8) पर येशु ने उसे उत्तर दिया, “धर्मग्रन्थ में यह लिखा है : ‘अपने प्रभु परमेश्वर की आराधना करो और केवल उसी की सेवा करो।’ ”
How did Jesus face this temptation?
From the following scriptures, what are some other examples idols we put before God?
(16) एक व्यक्ति येशु के पास आ कर बोला, “गुरुवर! शाश्वत जीवन प्राप्त करने के लिए मैं कौन-सा भला कार्य करूँ?”
(17) येशु ने उत्तर दिया, “भलाई के विषय में मुझ से क्यों पूछते हो? एक ही तो भला है। यदि तुम जीवन में प्रवेश करना चाहते हो, तो आज्ञाओं का पालन करो।”
(18) उसने पूछा, “कौन-सी आज्ञाएँ?” येशु ने कहा, “हत्या मत करो; व्यभिचार मत करो; चोरी मत करो; झूठी गवाही मत दो;
(19) अपने माता-पिता का आदर करो; और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो।”
(20) नवयुवक ने उनसे कहा, “मैंने इन सब का पालन किया है। मुझ में किस बात की कमी है?”
(21) येशु ने उसे उत्तर दिया, “यदि तुम पूर्ण होना चाहते हो, तो जाओ, अपनी सम्पत्ति बेच कर गरीबों को दे दो और स्वर्ग में तुम्हारा धन होगा। तब आ कर मेरा अनुसरण करो।”
(22) यह बात सुनकर वह नवयुवक उदास होकर चला गया, क्योंकि उसके पास बहुत धन-सम्पत्ति थी।
How can wealth become an idol?
इस वर्तमान संसार के धनवानों से अनुरोध करो कि वे घमण्ड न करें और नश्वर धन-सम्पत्ति पर नहीं, बल्कि परमेश्वर पर भरोसा रखें, जो हमारे उपभोग की सब वस्तुएं पर्याप्त मात्रा में देता है।
How does God want us to see wealth?
(40) परन्तु मार्था सेवा-सत्कार के अनेक कार्यों में उलझी हुई थी। उसने सामने आकर कहा, “प्रभु! आपको कुछ भी चिन्ता नहीं कि मेरी बहिन ने सेवा-सत्कार का पूरा भार मुझ अकेली पर ही छोड़ दिया है? उस से कहिए कि वह मेरी सहायता करे।”
(41) प्रभु ने उसे उत्तर दिया, “मार्था! मार्था! तुम बहुत-सी बातों के विषय में चिन्तित और परेशान हो;
(42) जबकि केवल एक ही बात आवश्यक है। मरियम ने उस सर्वोत्तम भाग को चुना है। वह उससे नहीं छीना जाएगा।”
अधिक महत्वपूर्ण बात क्या थी?
(25) येशु के साथ-साथ एक विशाल जनसमूह चल रहा था। उन्होंने मुड़ कर लोगों से कहा,
(26) “यदि कोई मेरे पास आता है और अपने माता-पिता, पत्नी, सन्तान, भाई-बहिनों और यहाँ तक कि अपने जीवन से बैर नहीं करता, तो वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।
क्या परिवार मूर्ति बन सकता है?
और जिस किसी ने मेरे नाम के लिए घरबार, भाइयों, बहिनों, पिता, माता, बाल-बच्चों अथवा खेतों को छोड़ दिया है, वह सौ गुना पाएगा और शाश्वत जीवन का अधिकारी होगा।
अगर हम उसे पहला स्थान दें, तो क्या परमेश्वर हमारे परिवारों को हमारे लिए बहाल कर सकता है?
पूछिए
किन तरीकों से परमेश्वर ने आपको चुनौती दी है कि आप उसे पहला स्थान दें?
आवेदन
अपने आप को परमेश्वर के सामने अर्पण करने के लिए आपको क्या करने की आवश्यकता है?
प्रार्थना
हे प्रभु, मुझे अपने जीवन में तुझे प्रथम स्थान देने में मेरी सहायता कर। मैं जानता हूं कि इस तरह मैं अपने आप को तेरे सामने अर्पण करता हूं। मैं उन सभी मूर्तियों और व्याकुलताओं को अलग करना चाहता हूं जो मुझे तुझसे दूर करने की कोशिश करते हैं, और मेरे जीवन के लिए तेरी योजनाओं को पूरा करना चाहता हूँ।
प्रमुख पध
येशु ने उस से कहा, “ ‘अपने प्रभु परमेश्वर को अपने सम्पूर्ण हृदय, सम्पूर्ण प्राण और सम्पूर्ण बुद्धि से प्रेम करो।’