परमेश्वर की ओर मुड़ना
पश्चाताप का अर्थ है परमेश्वर की ओर मुड़ना । इसमें एक फ़ैसला और क्रिया शामिल है, स्वयं के रास्ते की पर जाने कि दिशा बदलके परमेश्वर कि ओर मुड़ने का फैसला लेना ।
पश्चाताप का महत्व
अत: आप लोग पश्चात्ताप करें और परमेश्वर के पास लौट आयें, जिससे आपके पाप मिट जायें
किस तरीके से पश्चाताप उद्धार का एक भाग है?
क्योंकि जो दु:ख परमेश्वर की इच्छानुसार स्वीकार किया जाता, उसका परिणाम होता है हृदय-परिवर्तन तथा उद्धार। इसमें पछताना नहीं पड़ता। परन्तु सांसारिक दु:ख का परिणाम है मृत्यु।
पश्चाताप कैसे सिर्फ शोक महसूस करने से अलग है?
पश्चाताप के कदम
हम खोए हुए पुत्र के बारे में पढ़ेंगे लूकस 15:11-24. इस दृश्टान्त का सारांश बताइये।
(11) येशु ने कहा, “किसी मनुष्य के दो पुत्र थे।
(12) छोटे पुत्र ने अपने पिता से कहा, ‘पिता जी! सम्पत्ति का जो भाग मेरा है, वह मुझे दे दीजिए’, और पिता ने उन में अपनी सम्पत्ति बाँट दी।
(13) थोड़े ही दिनों बाद छोटा पुत्र अपनी समस्त सम्पत्ति एकत्र कर किसी दूर देश को चला गया और वहाँ उसने भोग-विलास में अपनी सम्पत्ति उड़ा दी।
(14) जब वह सब कुछ खर्च कर चुका, तो उस देश में भारी अकाल पड़ा और वह कंगाल हो गया।
(15) इसलिए उसने उस देश के एक नागरिक के यहाँ आश्रय लिया, जिसने उसे अपने खेतों में सूअर चराने भेजा।
(16) जो फलियाँ सूअर खाते थे, उन्हीं से वह अपना पेट भरने के लिए तरसता था, लेकिन कोई उसे कुछ नहीं देता था।
(17) तब वह होश में आया और यह सोचने लगा : ‘मेरे पिता के घर में कितने ही मजदूरों को आवश्यकता से अधिक रोटी मिलती है और मैं यहाँ भूखों मर रहा हूँ।
(18) मैं उठ कर अपने पिता के पास जाऊंगा और उन से कहूँगा, “पिताजी! मैंने स्वर्ग के विरुद्ध और आपके प्रति पाप किया है।
(19) मैं आपका पुत्र कहलाने के योग्य नहीं रहा। मुझे अपने मजदूरों में से एक जैसा रख लीजिए।” ’
(20) तब वह उठ कर अपने पिता के घर की ओर चल पड़ा। वह दूर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया और वह दया से द्रवित हो उठा। उसने दौड़कर उसे गले लगा लिया और उसका चुम्बन किया।
(21) तब पुत्र ने उससे कहा, “पिता जी! मैंने स्वर्ग के विरुद्ध और आपके प्रति पाप किया है। मैं आपका पुत्र कहलाने के योग्य नहीं रहा।’
(22) परन्तु पिता ने अपने सेवकों से कहा, ‘शीघ्र अच्छे-से-अच्छे वस्त्र ला कर इस को पहनाओ और इसकी उँगली में अँगूठी और इसके पैरों में जूते पहना दो।
(23) मोटा पशु ला कर काटो ताकि हम खाएँ और आनन्द मनाएँ;
(24) क्योंकि मेरा यह पुत्र मर गया था और फिर जी गया है, यह खो गया था और फिर मिल गया है।’ और वे आनन्द मनाने लगे।
(11) येशु ने कहा, “किसी मनुष्य के दो पुत्र थे।
(12) छोटे पुत्र ने अपने पिता से कहा, ‘पिता जी! सम्पत्ति का जो भाग मेरा है, वह मुझे दे दीजिए’, और पिता ने उन में अपनी सम्पत्ति बाँट दी।
(13) थोड़े ही दिनों बाद छोटा पुत्र अपनी समस्त सम्पत्ति एकत्र कर किसी दूर देश को चला गया और वहाँ उसने भोग-विलास में अपनी सम्पत्ति उड़ा दी।
(14) जब वह सब कुछ खर्च कर चुका, तो उस देश में भारी अकाल पड़ा और वह कंगाल हो गया।
(15) इसलिए उसने उस देश के एक नागरिक के यहाँ आश्रय लिया, जिसने उसे अपने खेतों में सूअर चराने भेजा।
(16) जो फलियाँ सूअर खाते थे, उन्हीं से वह अपना पेट भरने के लिए तरसता था, लेकिन कोई उसे कुछ नहीं देता था।
तब वह होश में आया और यह सोचने लगा : ‘मेरे पिता के घर में कितने ही मजदूरों को आवश्यकता से अधिक रोटी मिलती है और मैं यहाँ भूखों मर रहा हूँ।
(18) मैं उठ कर अपने पिता के पास जाऊंगा और उन से कहूँगा, “पिताजी! मैंने स्वर्ग के विरुद्ध और आपके प्रति पाप किया है।
(19) मैं आपका पुत्र कहलाने के योग्य नहीं रहा। मुझे अपने मजदूरों में से एक जैसा रख लीजिए।” ’
(20) तब वह उठ कर अपने पिता के घर की ओर चल पड़ा। वह दूर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया और वह दया से द्रवित हो उठा। उसने दौड़कर उसे गले लगा लिया और उसका चुम्बन किया।
(21) तब पुत्र ने उससे कहा, “पिता जी! मैंने स्वर्ग के विरुद्ध और आपके प्रति पाप किया है। मैं आपका पुत्र कहलाने के योग्य नहीं रहा।’
(22) परन्तु पिता ने अपने सेवकों से कहा, ‘शीघ्र अच्छे-से-अच्छे वस्त्र ला कर इस को पहनाओ और इसकी उँगली में अँगूठी और इसके पैरों में जूते पहना दो।
(23) मोटा पशु ला कर काटो ताकि हम खाएँ और आनन्द मनाएँ;
(24) क्योंकि मेरा यह पुत्र मर गया था और फिर जी गया है, यह खो गया था और फिर मिल गया है।’ और वे आनन्द मनाने लगे।
पश्चाताप का फल
जक्कई के बारे में पढ़ें लूकस 19:5-9
(5) जब येशु उस जगह पहुँचे, तो उन्होंने आँखें ऊपर उठा कर जक्कई से कहा, “जक्कई! जल्दी नीचे उतरो, क्योंकि आज मुझे तुम्हारे यहाँ ठहरना है।”
(6) वह तुरन्त नीचे उतरा और आनन्द के साथ अपने यहाँ येशु का स्वागत किया।
(7) इस पर सब लोग यह कहते हुए भुनभुनाने लगे, “वह एक पापी व्यक्ति का अतिथि बनने गये हैं।”
(8) जक्कई सबके सामने खड़ा हुआ और उसने प्रभु से कहा, “प्रभु! देखिए, मैं अपनी आधी सम्पत्ति गरीबों को दिए देता हूँ और यदि मैंने किसी से अन्यायपूर्वक कुछ लिया है, तो उसे चौगुना लौटाए देता हूँ।”
(9) येशु ने उससे कहा, “आज इस घर में मुक्ति का आगमन हुआ है, क्योंकि यह भी अब्राहम की संतान है।
वह बदल गया था यह दिखाने के लिए उसने क्या किया?
पश्चात्ताप का उचित फल उत्पन्न करो
हमने पश्चाताप किया है यह दिखाने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
(1) अत:, भाइयो और बहिनो! मैं परमेश्वर की दया के नाम पर अनुरोध करता हूँ कि आप जीवन्त, पवित्र तथा सुग्राह्य बलि के रूप में अपने को परमेश्वर के प्रति अर्पित करें; यही आपकी आत्मिक उपासना है।
(2) आप इस संसार के अनुरूप आचरण न करें, बल्कि सब कुछ नयी दृष्टि से देखें और अपना स्वभाव बदल लें। इस प्रकार आप जान जायेंगे कि परमेश्वर क्या चाहता है और उसकी दृष्टि में क्या भला, सुग्राह्य तथा सर्वोत्तम है।
हम पश्चाताप को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा कैसे बना सकते हैं?
पश्चाताप के लिए 3 कदम
1. परमेश्वर के खिलाफ पाप करने के लिए गहरा खेद महसूस करना (2 कुरिन्थियों 7:10)
क्योंकि जो दु:ख परमेश्वर की इच्छानुसार स्वीकार किया जाता, उसका परिणाम होता है हृदय-परिवर्तन तथा उद्धार। इसमें पछताना नहीं पड़ता। परन्तु सांसारिक दु:ख का परिणाम है मृत्यु।
2. अपने पापों को कबूल करना (1 योहन 1:9, याकूब 5:16)
1 योहन 1:9 (HINDICL-BSI)
यदि हम अपने पाप स्वीकार करते हैं, तो परमेश्वर हमारे पाप क्षमा करेगा और हमें हर अपराध से शुद्ध करेगा; क्योंकि वह विश्वसनीय तथा धार्मिक है।
याकूब 5:16 (HINDICL-BSI)
इसलिए आप लोग एक दूसरे के सामने अपने-अपने पाप स्वीकार करें और एक दूसरे के लिए प्रार्थना करें, जिससे आप स्वस्थ हो जायें। धर्मात्मा की भक्तिमय प्रार्थना बहुत प्रभावशाली होती है।
3. पाप पर मसीह की जीत और अपने जीवन पर इसके प्रभावों की घोषणा करें और आनंद से रहें (कुलुस्सियों 2:14-15)
(14) उसने हमें दोषी ठहराने वाले दस्तावेज को रद्द कर दिया, जो विधि-नियमों के कारण हमारे विरुद्ध था, और उसे क्रूस पर ठोंक कर उठा दिया है।
(15) उसने प्रत्येक आधिपत्य और अधिकार को अपदस्थ किया, संसार की दृष्टि में उन को नीचा दिखाया और क्रूस की विजय-यात्रा में उन्हें बन्दियों के समान घुमाया।
दोस्त से पूछें
क्या आप अपने व्यक्तिगत पश्चाताप की कहानी बयान कर सकते हैं?
आवेदन
क्या आप कुछ ऐसा कर सकते हैं जिससे आपके जीवन में बदलाव आये या आपने कुछ ऐसा किया है जिससे आपके जीवन में बदलाव दीखता है? इस विषय में परमेश्वर से मार्गदर्शन मांगे।
पढ़िए भजन संहिता 51 इस भजन संहिता में दाऊद अपने पापों के लिए पश्चाताप करता है।
(1) हे परमेश्वर, तू करुणामय है; मुझ पर कृपा कर। मेरे अपराधों को मिटा दे, क्योंकि तेरा अनुग्रह असीम है।
(2) मेरे अधर्म से मुझे पूर्णत: धो, मेरे पाप से मुझे शुद्ध कर।
(3) मैं अपने अपराधों को जानता हूँ; मेरा पाप निरन्तर मेरे समक्ष रहता है।
(4) तेरे विरुद्ध, तेरे ही विरुद्ध मैंने पाप किया है। और वही किया जो तेरी दृष्टि में बुरा है। इसलिए तू अपने निर्णय में निर्दोष, और न्याय में निष्पक्ष है।
(5) मैं अधर्म में उत्पन्न हुआ था; और पाप में मेरी मां ने मुझे गर्भ में धारण किया था।
(6) तू अंत:करण की सच्चाई से प्रसन्न होता है; अत: मेरे हृदय को ज्ञान की बातें सिखा।
(7) जूफा की डाली से मुझे शुद्ध कर; तब मैं पवित्र हो जाऊंगा। मुझे धो तो मैं हिम से अधिक श्वेत बनूंगा।
(8) मुझे हर्ष और आनन्द का सन्देश सुना जिससे मेरी हड्डियां जिन्हें तूने चूर-चूर कर दिया है, प्रफुल्लित हो सकें।
(9) अपना मुख मेरे पापों की ओर से फेर ले; तू मेरे समस्त अधर्म को मिटा दे।
(10) हे परमेश्वर, मुझ में शुद्ध हृदय उत्पन्न कर। तू मेरे भीतर नई और स्थिर आत्मा निर्मित कर।
(11) मुझे अपनी उपस्थिति से दूर न कर, तू अपना पवित्र आत्मा मुझसे वापस न ले।
(12) अपने उद्धार का हर्ष मुझे लौटा दे; उदार आत्मा से मुझे सहारा दे।
(13) तब मैं अपराधियों को तेरे मार्ग सिखाऊंगा, और पापी तेरी ओर लौटेंगे।
(14) हे परमेश्वर, मेरे उद्धार के परमेश्वर, मुझे रक्तपात के दोष से मुक्त कर, तब मैं अपने मुंह से तेरी धार्मिकता का जयजयकार करूंगा।
(15) हे स्वामी, मेरे ओंठों को खोल; तब मेरा मुंह तेरी स्तुति करेगा।
(16) तू बलि से प्रसन्न नहीं होता; अन्यथा मैं बलि चढ़ाता; तू अग्निबलि की इच्छा नहीं करता।
(17) विदीर्ण आत्मा की बलि परमेश्वर को प्रिय है, हे परमेश्वर, तू विदीर्ण और भग्न हृदय की उपेक्षा नहीं करता।
(18) कृपया तू सियोन की भलाई कर; तू यरूशलेम नगर का परकोटा बना दे।
(19) तब तू विधि-सम्मत बलिदानों से, अग्निबलि और पूर्ण अग्निबलि से प्रसन्न होगा। तब लोग तेरी वेदी पर सांड़ों को चढ़ाएंगे।
मॉडल प्रार्थना
प्रभु यीशु, मुझे बचाने के लिए धन्यवाद। मैंने पाप से दूर होने का फैसला किया है और आपको भावता हुआ जीवन व्यतीत करने का निर्णय लिया हैं । मैं अपना जीवन आपके लिए समर्पित करता हूं।
प्रमुख पध
यदि हम अपने पाप स्वीकार करते हैं, तो परमेश्वर हमारे पाप क्षमा करेगा और हमें हर अपराध से शुद्ध करेगा; क्योंकि वह विश्वसनीय तथा धार्मिक है।