कुछ शिष्यों का जीवन देखकर ऐसा नहीं लगता कि वे परमेश्वर के कार्य को सफलता से कर पाते। लेकिन यीशु ने उनमें वो क्षमता देखी जो और लोगों के नज़र के परे था। वास्तव में, वो शिष्य पवित्र आत्मा में सम्मान, दृढ़शक्ति, आत्म बलिदान और शक्ति से भरपूर पुरुष और स्त्री बनें।
किसके पास क्षमता है
नीचे लिखे वचनों को पढ़ें और एक संभावित नेता के गुणों का वर्णन करें।
“जो छोटी-से-छोटी बातों में ईमानदार है, वह बड़ी बातों में भी ईमानदार है और जो छोटी-से-छोटी बातों में बेईमान है, वह बड़ी बातों में भी बेईमान है।
“यदि कोई मेरे पास आता है और अपने माता-पिता, पत्नी, सन्तान, भाई-बहिनों और यहाँ तक कि अपने जीवन से बैर नहीं करता, तो वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।
(28) “तुम में ऐसा कौन होगा, जो मीनार बनवाना चाहे और पहले बैठ कर खर्च का हिसाब न लगाए और यह न देखे कि क्या उसे पूरा करने की पूँजी उसके पास है?
(29) कहीं ऐसा न हो कि नींव डालने के बाद वह निर्माण-कार्य, पूरा न कर सके और देखने वाले यह कहते हुए उसकी हँसी उड़ाने लगें,
(30) ‘इस मनुष्य ने निर्माण-कार्य प्रारम्भ तो किया, किन्तु यह उसे पूरा नहीं कर सका।’
मत्ती 20:28 (HINDICL-BSI)
जैसे मानव-पुत्र अपनी सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने तथा बहुतों के बदले उनकी मुक्ति के मूल्य में अपने प्राण देने आया है।”
1 पतरस 4:10 (HINDICL-BSI)
जिसे जो वरदान मिला है, वह-परमेश्वर के बहुविध अनुग्रह के सुयोग्य भण्डारी की तरह-दूसरों की सेवा में उसका उपयोग करे।
अगुवाई करने के लिए कौन तैयार है
(1) महानगर अन्ताकिया की स्थानीय कलीसिया में कई नबी और शिक्षक थे : जैसे बरनबास, शिमोन जो ‘कलुआ’ कहलाता था, कुरेने-निवासी लूकियुस, शासक हेरोदेस का दूध-भाई मनाहेन और शाऊल।
(2) जब वे प्रभु की उपासना में लगे हुये थे और उपवास कर रहे थे तो पवित्र आत्मा ने कहा, “मैंने बरनबास तथा शाऊल को एक विशेष कार्य के लिए बुलाया है। उन्हें मेरे लिए अलग करो।”
(3) तब उन्होंने उपवास तथा प्रार्थना कर बरनबास तथा शाऊल पर हाथ रखे और उन्हें विदा किया।
चर्च में अगुआ की जिम्मेदारी लेने के लिए किस तरह का व्यक्ति तैयार है?
1 तिमोथी 3:1-7 (HINDICL-BSI)
(1) तुम निश्चित रूप से जान लो कि अन्तिम दिनों में संकटपूर्ण समय आ पड़ेगा।
(2) मनुष्य स्वार्थी, लोभी, डींग मारने वाले, अहंकारी और परनिन्दक होंगे। वे अपने माता-पिता की आज्ञा नहीं मानेंगे। उन में कृतज्ञता, पवित्रता,
(3) प्रेम और दया का अभाव होगा। वे चुगलखोर, असंयमी, क्रुर, हर प्रकार की भलाई के बैरी,
(4) विश्वासघाती, दु:साहसी और घमण्डी होंगे। वे परमेश्वर के नहीं, बल्कि भोगविलास के पुजारी बनेंगे।
(5) वे भक्ति का स्वांग तो रचेंगे ही, किन्तु इसका वास्तविक स्वरूप अस्वीकार करेंगे। तुम ऐसे लोगों से दूर रहो।
(6) ये लोग घरों में छिपे-छिपे घुस जाते हैं और उन मूर्ख स्त्रियों को अपने जाल में फंसाते हैं, जो अपने पापों के भार से दब कर नाना प्रकार की वासनाओं से संचालित हैं,
(7) जो सदा सीखना चाहती हैं, किन्तु सच्चाई के ज्ञान तक पहुँचने में असमर्थ हैं।
1 तिमोथी 3:8-13 (HINDICL-BSI)
(8) जिस तरह यन्नेस और यम्ब्रेस ने मूसा का विरोध किया था, उसी तरह ये लोग सच्चाई का विरोध करते हैं। इनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गयी है और इनका विश्वास कच्चा है।
(9) किन्तु इन्हें सफलता नहीं मिलेगी, क्योंकि मूसा के विरोधियों की तरह इनकी मूर्खता भी सब पर प्रकट हो जायेगी।
(10) तुमने मेरी शिक्षा, मेरे आचरण, मेरे उद्देश्य, मेरे विश्वास, सहनशीलता, प्रेम और धैर्य का अनुकरण किया है।
(11) तुम जानते हो कि अन्ताकिया, इकोनियुम तथा लुस्त्रा जैसे नगरों में मुझ पर क्या-क्या अत्याचार हुए और मुझे कितना सताया गया। मैंने कितने अत्याचार सहे! किन्तु प्रभु सब में मेरी रक्षा करता रहा है।
(12) वास्तव में जो लोग येशु मसीह के शिष्य बन कर भक्तिपूर्वक जीवन बिताना चाहेंगे, उन सबको अत्याचार सहना ही पड़ेगा।
(13) किन्तु पापी और धूर्त लोग दूसरों को और अपने को धोखा देते हुए बदतर होते जायेंगे।
चर्च में एक अगुआ के गुणों की सूची बनाएं।
हर कमज़ोर कहे मैं बलवान हूँ”
नीचे लिखे वचन उन लोगों के बारे में क्या कहते हैं जो अपने आप में क्षमता नहीं देख पाते हैं?
अपने हल की फालों से तलवार बनाओ, अपने हंसियों को भालों में बदलो। दुर्बल व्यक्ति भी यह कहे: “मैं योद्धा हूं।” ’
(26) भाइयो और बहिनो! इस बात पर विचार कीजिए कि बुलाये जाते समय संसार की दृष्टि में आप लोगों में से बहुत कम लोग ज्ञानी, शक्तिशाली अथवा कुलीन थे।
(27) ज्ञानियों को लज्जित करने के लिए परमेश्वर ने उन लोगों को चुना है, जो संसार की दृष्टि में मूर्ख हैं। शक्तिशालियों को लज्जित करने के लिए उसने उन लोगों को चुना है, जो संसार की दृष्टि में दुर्बल हैं।
(28) गण्य-माण्य लोगों का घमण्ड चूर करने के लिए उसने उन लोगों को चुना है, जो संसार की दृष्टि में तुच्छ, नीच और नगण्य हैं,
(14) यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन करते हो, तो तुम मेरे मित्र हो।
(15) अब से मैं तुम्हें सेवक नहीं कहूँगा। सेवक नहीं जानता कि उसका स्वामी क्या करने वाला है। मैंने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैंने अपने पिता से जो कुछ सुना, वह सब तुम्हें बता दिया है।
(16) तुम ने मुझे नहीं चुना, बल्कि मैंने तुम्हें इसलिए चुना और नियुक्त किया कि तुम संसार में जाओ और फलवंत हो तथा तुम्हारा फल बना रहे, जिससे तुम मेरे नाम में पिता से जो कुछ माँगो, वह तुम्हें प्रदान करे।
(17) मैं तुम को ये आज्ञाएँ इस लिए दे रहा हूँ कि तुम एक-दूसरे से प्रेम करो।
पूछिए
- एक अगुआ होने के बारे में आपने क्या सीखा है?
- क्या आप खुद में क्षमता देखते हैं?
- क्या आपको लगता है कि इस अध्ययन से आपको संभावित अगुवों की पहचान करने में मदद मिली है?
आवेदन
व्यक्तिगत रूप से आपके लिए अगला कदम क्या है?
प्रार्थना
परमेश्वर, मैं अपने जीवन के सभी क्षेत्रों में एक अच्छा अगुआ बनना चाहूंगा। कृपया मुझे अपनी क्षमता में विकसित होने में मदद करें, और अन्य लोगों को उनकी क्षमता में बढ़ने में सहायता करने के लिए मेरी मदद करें।
प्रमुख पध
यह कथन विश्वसनीय है। यदि कोई धर्माध्यक्ष बनना चाहता है, तो वह एक अच्छा कार्य करने की कामना करता है।