इसलिए पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी के साथ रहेगा, और वे एक देह होंगे।
जब बाइबल “एक तन” के बारे में बोलती है, तो यह स्त्री पुरुष के सम्बन्ध के बारे में बोलती है। यह सम्बन्ध शरीर, मन और आत्मा का सम्मिश्रण है। इसका मतलब है कि हम अपने सभी सपनों, गहरी इच्छाओं, ऊर्जाओं और प्यार को अपने पति या पत्नी के सामने प्रकट करते हैं और “अपने आप” को सबसे बड़े उपहार के रूप में देते हैं । स्त्री पुरुष के सम्बन्ध मे, सबसे अंतरंग तरीके से आप कहते हैं कि “मैं आपसे प्यार करता हूँ”। परमेश्वर ने शादी के द्वारा “दो” को “एक” बनने के लिए स्त्री पुरुष के सम्बन्ध कि रचना की है। इसलिए, स्त्री पुरुष के सम्बन्ध आपके लिए परमेश्वर का विशेष शादी का उपहार है।
विवाह कि आशीष
परमेश्वर विवाह को कैसे आशीषित करते हैं?
(27) अत: परमेश्वर ने अपने स्वरूप में मनुष्य को रचा। परमेश्वर के स्वरूप में उसने मनुष्य की सृष्टि की। परमेश्वर ने उन्हें नर और नारी बनाया।
(28) परमेश्वर ने उन्हें यह आशिष दी, ‘फलो-फूलो और पृथ्वी को भर दो, और उसे अपने अधिकार में कर लो। समुद्र के जलचरों, आकाश के पक्षियों और भूमि के समस्त गतिमान जीव-जन्तुओं पर तुम्हारा अधिकार हो।’
(24) इसलिए पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी के साथ रहेगा, और वे एक देह होंगे।
(25) मनुष्य और उसकी पत्नी नग्न थे, पर वे लज्जित न थे।
(18) तेरा झरना सदा हरा-भरा रहे; तु अपनी युवावस्था की पत्नी से ही सदा सुखी रहना;
(19) वह तेरी दृष्टि में हमेशा सुन्दर हरिणी, आकर्षक सांभरनी बनी रहे। उसका प्रेम सदा तुझे रसमय बनाए रखे, तू उसके प्रेम में सदा डूबे रहना।
(8) भाइयो और बहिनो! अन्त में यह : जो कुछ सच है, आदरणीय है; जो कुछ न्यायसंगत है, निर्दोष है; जो कुछ प्रीतिकर है, मनोहर है, जो कुछ भी उत्तम है, प्रशंसनीय है : ऐसी बातों का मनन किया करें।
(9) आप लोगों ने मुझ से जो सीखा, ग्रहण किया, सुना और मुझ में देखा, उसके अनुसार आचरण करें और शान्ति का परमेश्वर आप लोगों के साथ रहेगा।
(10) मुझे प्रभु में बड़ा आनन्द इसलिए हुआ कि मेरे प्रति आप लोगों की शुभचिंता इतने दिनों के बाद फिर पल्लवित हुई। इस से पहले भी आप को मेरी चिन्ता अवश्य थी, किन्तु उसे प्रकट करने का सुअवसर नहीं मिल रहा था।
यौन रूप से शुद्ध रहना
भजन संहिता 119:9 (HINDI-BSI)
जवान व्यक्ति अपना आचरण किस प्रकार शुद्ध रख सकता है? प्रभु, तेरे वचन का पालन करके।
1 थिस्सलुनीकियों 4:3-5 (HINDI-BSI)
(3) परमेश्वर की इच्छा यही है कि आप लोग पवित्र बनें और व्यभिचार से दूर रहें।
(4) आप में से प्रत्येक व्यक्ति संयम सीख कर अपने शरीर को पवित्र बनाये रखे और उसका सम्मान करे।
(5) उन विधर्मियों की तरह जो कि परमेश्वर को नहीं जानते, कोई भी वासना के वशीभूत न हो।
हम यौन रूप से शुद्ध कैसे रह सकते हैं?
पुरुषों और स्त्रियों को अश्लील साहित्य से अपनी सुरक्षा कैसे करनी चाहिए?
अब्नेर ने असाएल से फिर कहा, ‘मेरा पीछा करना छोड़ दो। मैं तुम पर वार कर तुम्हें धराशायी करना नहीं चाहता। मैं तुम्हारे भाई योआब को अपना मुँह कैसे दिखा सकूँगा?’
ऊत्स देश में एक मनुष्य रहता था। उसका नाम अय्यूब था। वह प्रत्येक दृष्टि से सिद्ध और निष्कपट था। वह परमेश्वर से डरता और बुराई से दूर रहता था।
क्योंकि परमेश्वर का वचन जीवन्त, सशक्त और किसी भी दुधारी तलवार से तेज है। वह प्राण और आत्मा के, अथवा ग्रंथियों और मज्जा के विच्छेद तक पहुँचता और हमारे हृदय के भावों तथा विचारों को परखता है।
शादी में अश्लील साहित्य/चलचित्र आपके विवाह में एक तीसरे पक्ष को आमंत्रित करने जैसा है।
इब्रानियों 13:4 (HINDI-BSI)
आप लोगों में विवाह सम्मानित और दाम्पत्य जीवन अदूषित हो; क्योंकि परमेश्वर लम्पटों और व्यभिचारियों का न्याय करेगा।
मत्ती 5:28 (HINDI-BSI)
परन्तु मैं तुम से कहता हूँ : जो कोई बुरी इच्छा से किसी स्त्री पर दृष्टि डालता है, वह अपने मन में उसके साथ व्यभिचार कर चुका है।
एक विवाहित जोड़े को अश्लील साहित्य/चलचित्र से क्यों बचना चाहिए?
नीचे लिखे वचनो से आप क्या प्रोत्साहन या सलाह ले सकते हैं?
आप को अब तक ऐसा प्रलोभन नहीं दिया गया है, जो मनुष्य की शक्ति से परे हो। परमेश्वर सत्यप्रतिज्ञ है। वह आप को ऐसे प्रलोभन में पड़ने नहीं देगा, जो आपकी शक्ति से परे हो। वह प्रलोभन के समय आप को उससे निकलने का मार्ग दिखायेगा, जिससे आप उसे सहन कर सकें।
परमेश्वर हमें प्रलोभन से निपटने में कैसे मदद करता है?
परमेश्वर ने हमें कायरता का नहीं, बल्कि सामर्थ्य, प्रेम तथा आत्मसंयम का आत्मा प्रदान किया है।
हम ताकत कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
(8) आप संयम रखें और जागते रहें! आपका विरोधी, शैतान, दहाड़ते हुए सिंह की तरह विचरता है और ढूँढ़ता रहता है कि किसे फाड़ खाये।
(9) आप विश्वास में दृढ़ हो कर उसका सामना करें। आप जानते हैं कि संसार भर में आपके भाई-बहिन भी इस प्रकार का दु:ख भोग रहे हैं।
क्या हम इस संघर्ष में अकेले हैं?
(5) इसलिए आप लोग अपने शरीर में इन बातों को निर्जीव करें जो संसार की हैं, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, कामुकता, विषयवासना और लोभ को जो मूर्तिपूजा के सदृश है।
(6) इन बातों के कारण अवज्ञा की संतान पर परमेश्वर का कोप आ पड़ता है।
(7) आप भी पहले यह सब कर चुके हैं, जब आप इस प्रकार का पापमय जीवन बिताते थे।
(8) अब तो आप लोगों को क्रोध, उत्तेजना, द्वेष, परनिन्दा और अश्लील बातचीत सर्वथा छोड़ देनी चाहिए।
(9) कभी एक दूसरे से झूठ नहीं बोलें। आप लोगों ने अपना पुराना स्वभाव और उसके कर्मों को उतार कर
(10) एक नया स्वभाव धारण किया है। यह स्वभाव अपने सृष्टिकर्ता का प्रतिरूप बन कर नवीन होता रहता और पूर्ण ज्ञान की ओर आगे बढ़ता है।
हमारे सृजनहार को जानना क्यों महत्वपूर्ण है?
1 तिमोथी 5:1-2 (HINDI-BSI)
(1) बड़े-बूढ़े को कभी नहीं डाँटो, बल्कि उससे इस प्रकार अनुरोध करो, मानो वह तुम्हारा पिता हो। युवकों को भाई,
(2) वृद्धाओं को माता और युवतियों को बहिन समझ कर उनके साथ शुद्ध मन से व्यवहार करो।
रोमियों 1:25-28 (HINDI-BSI)
(25) उन्होंने परमेश्वर के सत्य के स्थान पर झूठ को अपनाया और सृष्ट वस्तुओं की उपासना और आराधना की, किन्तु उस सृष्टिकर्ता की नहीं, जो युगों-युगों तक धन्य है। आमेन!
(26) यही कारण है कि परमेश्वर ने उन्हें उनकी घृणित वासनाओं का शिकार होने दिया। उनकी स्त्रियाँ प्राकृतिक संसर्ग छोड़ कर अप्राकृतिक संसर्ग करने लगीं।
(27) इसी प्रकार उनके पुरुष भी स्त्रियों का प्राकृतिक संसर्ग छोड़ कर एक-दूसरे के लिए वासना से जलने लगे। पुरुष पुरुषों के साथ कुकर्म करते हैं और इस प्रकार वे अपने भ्रष्ट आचरण का उचित फल स्वयं भोग रहे हैं।
(28) उन्होंने परमेश्वर का सच्चा ज्ञान प्राप्त करना उचित नहीं समझा, इसलिए परमेश्वर ने उन्हें उनकी भ्रष्ट बुद्धि पर छोड़ दिया, जिससे वे अनुचित आचरण करने लगे।
उसी / विपरीत लिंग के लोगों के प्रति हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए?
इफिसियों 4:20-24 (HINDI-BSI)
(20) आप लोगों को मसीह से ऐसी शिक्षा नहीं मिली।
(21) यदि आप लोगों ने उनके विषय में सुना और उस सत्य के अनुसार शिक्षा ग्रहण की है जो येशु में प्रकट हुआ,
(22) तो आप लोगों को अपना पहला आचरण और पुराना स्वभाव त्याग देना चाहिए, क्योंकि वह बहकाने वाली दुर्वासनाओं के कारण बिगड़ता जा रहा है।
(23) आप लोग पूर्ण रूप से नवीन आध्यात्मिक विचारधारा अपनायें
(24) और एक नवीन स्वभाव धारण करें, जिसकी सृष्टि परमेश्वर के अनुसार हुई है और जो धार्मिकता तथा सच्ची पवित्रता में व्यक्त होता है।
गलातियों 5:19-23 (HINDI-BSI)
(19) शारीरिक स्वभाव के कर्म प्रत्यक्ष हैं, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, लम्पटता,
(20) मूर्ति-पूजा, जादू-टोना, बैर, फूट, ईष्र्या, क्रोध, स्वार्थपरता, मनमुटाव, दलबन्दी,
(21) द्वेष, मतवालापन, रंगरलियाँ और इसी प्रकार की अन्य बातें। मैं आप लोगों से कहता हूँ, जैसा कि मैंने पहले भी कहा है, जो लोग इस प्रकार का आचरण करते हैं, वे परमेश्वर के राज्य के अधिकारी नहीं होंगे।
(22) परन्तु पवित्र आत्मा का फल है : प्रेम, आनन्द, शान्ति, सहनशीलता, दयालुता, हितकामना, ईमानदारी,
(23) नम्रता और संयम। इनके विरुद्ध कोई विधि नहीं है।
थिस्सलुनीकियों 4: 3, 7-8 (HINDI-BSI)
(3) परमेश्वर की इच्छा यही है कि आप लोग पवित्र बनें और व्यभिचार से दूर रहें।
(7) क्योंकि परमेश्वर ने हमें अशुद्धता के लिए नहीं, बल्कि पवित्रता के लिए बुलाया है।
(8) इसलिए जो इस आदेश का तिरस्कार करता है, वह मनुष्य का नहीं, बल्कि परमेश्वर का तिरस्कार करता है जो आप को अपना पवित्र आत्मा प्रदान करता है।
पवित्र आत्मा की भूमिका क्या है?
स्त्री पुरुष के सम्बन्ध को हमसे दूर ले जाना परमेश्वर का उद्देश्य नहीं है। इसके बजाय, वह हमारी रक्षा करना चाहता है, ताकि सही समय पर हम उस तरह से इस सम्बन्ध का उपहार प्राप्त कर सकें जिस तरह से परमेश्वर ने प्रयोजन रखा था – अद्भुत! बिना किसी डर के, बिना अस्थिरता के, बिना दर्द या शर्म के।
उत्पत्ति 39:10-12 (HINDI-BSI)
(10) यद्यपि वह दिन-प्रतिदिन यूसुफ से बोलती रही कि वह उसके साथ सोए, उसके साथ रहे, तथापि यूसुफ ने उसकी बात नहीं सुनी।
(11) एक दिन यूसुफ काम करने के लिए घर में आया। उस समय वहाँ घर का कोई भी मनुष्य नहीं था।
(12) पोटीफर की पत्नी ने यूसुफ का वस्त्र पकड़ लिया और उससे बोली, ‘मेरे साथ सो।’ किन्तु यूसुफ अपना वस्त्र उसके हाथ में छोड़कर भागा और घर से बाहर निकल गया।
उत्पत्ति 39:16-18 (HINDI-BSI)
(16) जब तक उसका स्वामी अपने घर में नहीं आया, उसने यूसुफ का वस्त्र अपने पास पड़ा रहने दिया।
(17) उसने अपने स्वामी से भी यही कहा, ‘जिस इब्रानी सेवक को आप हमारे मध्य में लाए हैं, वह मेरा अपमान करने के लिए मेरे पास आया।
(18) परन्तु जैसे ही मैंने ऊंची आवाज में पुकारा, वह अपना वस्त्र मेरे पास छोड़कर भागा और घर से बाहर निकल गया।’
उत्पत्ति 39:19-21 (HINDI-BSI)
(19) जब यूसुफ के स्वामी ने अपनी पत्नी के ये शब्द सुने, ‘आपके सेवक ने मुझसे ऐसा व्यवहार किया’, तब उसका क्रोध भड़क उठा।
(20) यूसुफ के स्वामी ने उसे पकड़कर कारागार में डाल दिया। इस स्थान में राजा के बन्दी कैद थे। यूसुफ भी कारागार में था।
(21) प्रभु उसके साथ था। उसने यूसुफ पर करुणा की और उसे कारागार के मुख्याधिकारी की कृपा-दृष्टि प्रदान की।
उत्पत्ति 39:23 (HINDI-BSI)
कारागार का मुख्याधिकारी यूसुफ के हाथ में सौंपी गई किसी भी वस्तु को देखता तक न था; क्योंकि प्रभु यूसुफ के साथ था। जो कुछ भी यूसुफ करता था, प्रभु उसे सफल बनाता था।
उत्पत्ति 41:38-41 (HINDI-BSI)
(38) फरओ ने अपने कर्मचारियों से कहा, ‘क्या हम इस व्यक्ति के सदृश, जिसमें परमेश्वर का आत्मा है, किसी दूसरे व्यक्ति को पा सकते हैं?’
(39) अत: फरओ ने यूसुफ से कहा, ‘परमेश्वर ने तुम पर ही ये बातें प्रकट कीं। इसलिए तुम्हारे सदृश समझदार और बुद्धिमान व्यक्ति और कोई नहीं है।
(40) तुम मेरे देश के प्रधान मंत्री होंगे। मेरी प्रजा तुम्हारे आदेशों का पालन करेगी। केवल राजसिंहासन पर मैं तुम से बड़ा रहूँगा।’
(41) फरओ ने यूसुफ से पुन: कहा, ‘देखो, मैं तुम्हें समस्त मिस्र देश का प्रधान मन्त्री नियुक्त करता हूँ।’
आपको विचार मे यूसुफ के लिए यौन पवित्रता इतनी महत्वपूर्ण क्यों थी?
दोस्त से पूछें
आपके लिए यौन शुद्धता कितनी महत्वपूर्ण है? और क्यों?
आवेदन
- क्या आपने कभी परमेश्वर से पूछा है कि वह आपको यौन रूप से शुद्ध रहने में मदद करें?
- आप अपने जीवन में यौन शुद्धता को कैसे प्राथमिकता दे सकते हैं?
मॉडल प्रार्थना
परमेश्वर, मैं आपको अपने जीवन में प्राथमिकता देना चाहता हूं। मैं आपको जानना चाहता हूं और आपके तरीकों का पालन करना चाहता हूं! मुझे यौन रूप मे शुद्ध होने में मदद करें। मुझे एक अच्छे विवाह के लिए एक बड़ा लक्ष्य प्राप्त करने में मदद करें जहां मैं खुशी के साथ स्त्री पुरुष के सम्बन्ध का उपहार दे सकता हूं और प्राप्त कर सकता हूं।
प्रमुख पध
परमेश्वर ने हमें कायरता का नहीं, बल्कि सामर्थ्य, प्रेम तथा आत्मसंयम का आत्मा प्रदान किया है।