अंतिम न्याय, जिसे अन्यथा ‘अंतिम न्याय का श्वेत सिंहासन’ के रूप में जाना जाता है, उस समय सभी लोग देखेंगे और समझेंगे कि कुछ लोग “आग की झील” में क्यों डाले जाएंगे।
(11) इसके बाद मैंने एक विशाल श्वेत सिंहासन और उस पर विराजमान व्यक्ति को देखा। पृथ्वी और आकाश उसके सामने लुप्त हो गये और उनका कहीं भी पता नहीं चला।
(12) मैंने छोटे-बड़े, सब मृतकों को सिंहासन के सामने खड़ा देखा। पुस्तकें खोली गयीं। तब एक अन्य पुस्तक-अर्थात जीवन-ग्रन्थ खोला गया। पुस्तकों में लिखी हुई बातों के आधार पर मृतकों का उनके कर्मों के अनुसार न्याय किया गया।
(13) समुद्र ने अपने मृतकों को प्रस्तुत किया। तब मृत्यु तथा अधोलोक ने अपने मृतकों को प्रस्तुत किया। हर एक का उसके कर्मों के अनुसार न्याय किया गया।
(14) इसके बाद मृत्यु और अधोलोक, दोनों को अग्निकुण्ड में डाल दिया गया। यह अग्निकुण्ड द्वितीय मृत्यु है।
(15) जिसका नाम जीवन-ग्रन्थ में लिखा हुआ नहीं मिला, वह अग्निकुण्ड में डाल दिया गया।
“आग की झील” क्या है?
“गेहन्ना” के रूप में भी जाना जाता है, एक वास्तविक और जागरूक जगह है।
वह हाथ में सूप ले चुके हैं, जिससे वह अपना खलिहान ओसा कर साफ करें और अपना गेहूँ अपने बखार में जमा करें। वह भूसी को कभी न बुझने वाली आग में जला देंगे।”
जो पुत्र में विश्वास करता है, उसे शाश्वत जीवन प्राप्त है। परन्तु जो पुत्र में विश्वास करने से इन्कार करता है, वह जीवन का दर्शन नहीं करेगा, परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर बना रहता है।
जो लोग पशु या उसकी प्रतिमा की आराधना करते अथवा उसके नाम की छाप ग्रहण करते हैं, उनकी यन्त्रणा का धूआँ युग-युगों तक ऊपर उठता रहेगा और उन्हें रात-दिन कभी चैन नहीं मिलेगा।”
(8) तब वह उन लोगों को दण्डित करेंगे, जो परमेश्वर को स्वीकार नहीं करते और हमारे प्रभु येशु का शुभ समाचार सुनने से इन्कार करते हैं।
(9) ऐसे लोगों को प्रभु के सान्निध्य और उनके तेजोमय सामर्थ्य से पृथक होकर अनंत विनाश का दण्ड मिलेगा।
(24) तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़कर पहले अपने भाई-बहिन से मेल करने जाओ और तब आ कर अपनी भेंट चढ़ाओ।
(25) “कचहरी जाते समय रास्ते में ही अपने मुद्दई से समझौता कर लो। कहीं ऐसा न हो कि वह तुम्हें न्यायाधीश के हवाले कर दे, न्यायाधीश तुम्हें सिपाही के हवाले कर दे और सिपाही तुम्हें बन्दीगृह में डाल दे।
मत्ती 8:12 (HINDICL-BSI)
परन्तु राज्य की सन्तान को बाहर, अन्धकार में फेंक दिया जाएगा। वहाँ वे लोग रोएँगे और दाँत पीसेंगे।”
मत्ती 22:13 (HINDICL-BSI)
तब राजा ने अपने सेवकों से कहा, ‘इसके हाथ-पैर बाँध कर इसे बाहर, अन्धकार में फेंक दो। वहाँ यह रोएगा और दाँत पीसता रहेगा।’
(28) जब तुम अब्राहम, इसहाक, याकूब और सभी नबियों को परमेश्वर के राज्य में देखोगे, परन्तु अपने को बहिष्कृत पाओगे, तब तुम रोओगे और दाँत पीसोगे।
(29) पूर्व तथा पश्चिम से और उत्तर तथा दक्षिण से लोग आएँगे और परमेश्वर के राज्य में भोज में सम्मिलित होंगे।
प्रकाशन 21:8 (HINDICL-BSI)
लेकिन कायरों, अविश्वासियों, नीचों, हत्यारों, व्यभिचारियों, ओझों, मूर्तिपूजकों और हर प्रकार के मिथ्यावादियों का अंत यह होगा − धधकती आग और गन्धक के कुण्ड में द्वितीय मृत्यु!”
प्रकाशन 22:15 (HINDICL-BSI)
कुत्ते, ओझे, व्यभिचारी, हत्यारे, मूर्तिपूजक, असत्य से प्रेम करनेवाले और मिथ्याचारी बाहर ही रहेंगे।
मत्ती 25:41 (HINDICL-BSI)
“तब राजा अपनी बायीं ओर के लोगों से कहेगा, ‘शापित लोगो! मुझ से दूर हो और उस अनन्त आग में जा पड़ो, जो शैतान और उसके दूतों के लिए तैयार की गयी है;
यह न्याय किस पर आधारित है?
(19) दोषी ठहराने का कारण यह है कि ज्योति संसार में आयी है और मनुष्यों ने ज्योति की अपेक्षा अन्धकार को अधिक पसन्द किया, क्योंकि उनके कार्य बुरे थे।
(20) जो बुराई करता है, वह ज्योति से बैर करता है और ज्योति के पास इसलिए नहीं आता कि कहीं उसके कार्यों के दोष प्रकट न हो जाएँ।
(11) इसके बाद मैंने एक विशाल श्वेत सिंहासन और उस पर विराजमान व्यक्ति को देखा। पृथ्वी और आकाश उसके सामने लुप्त हो गये और उनका कहीं भी पता नहीं चला।
(12) मैंने छोटे-बड़े, सब मृतकों को सिंहासन के सामने खड़ा देखा। पुस्तकें खोली गयीं। तब एक अन्य पुस्तक-अर्थात जीवन-ग्रन्थ खोला गया। पुस्तकों में लिखी हुई बातों के आधार पर मृतकों का उनके कर्मों के अनुसार न्याय किया गया।
(13) समुद्र ने अपने मृतकों को प्रस्तुत किया। तब मृत्यु तथा अधोलोक ने अपने मृतकों को प्रस्तुत किया। हर एक का उसके कर्मों के अनुसार न्याय किया गया।
(14) इसके बाद मृत्यु और अधोलोक, दोनों को अग्निकुण्ड में डाल दिया गया। यह अग्निकुण्ड द्वितीय मृत्यु है।
(15) जिसका नाम जीवन-ग्रन्थ में लिखा हुआ नहीं मिला, वह अग्निकुण्ड में डाल दिया गया।
क्या न्याय के अलग स्तर होंगे?
इसके लिए न्याय का वर्णन करें:
इज़राइल के बाहर सभी देशों के लोग (अन्यजातियों)
(12) जो मूसा की व्यवस्था के अधीन नहीं थे, यदि उन्होंने पाप किया होगा, तो वे बिना व्यवस्था के नष्ट हो जायेंगे; और जिन्होंने व्यवस्था के अधीन रह कर पाप किया होगा, उनका व्यवस्था के अनुसार न्याय किया जायेगा।
(13) क्योंकि व्यवस्था के सुनने वाले लोग परमेश्वर की दृष्टि में धार्मिक नहीं हैं, वरन् व्यवस्था का पालन करने वाले धार्मिक ठहराए जायेंगे।
(14) जब गैर-यहूदी, जिन्हें मूसा की व्यवस्था नहीं मिली, अपने आप उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, तो वे व्यवस्था-विहीन होते हुए भी स्वयं अपने लिए व्यवस्था हैं;
(15) क्योंकि वे अपने आचरण से इसका प्रमाण देते हैं कि व्यवस्था की आज्ञाएँ उनके हृदय पर अंकित हैं। उनका अन्त:करण भी इसके सम्बन्ध में साक्षी देता है। उनके विचार उन्हें कभी दोषी, तो कभी निर्दोष ठहराते हैं।
(16) यह सब उस दिन प्रकट किया जायेगा, जब परमेश्वर, मेरे शुभ समाचार के अनुसार, येशु मसीह द्वारा मनुष्यों के गुप्त विचारों का न्याय करेगा।
यहूदी लोग
(12) जो मूसा की व्यवस्था के अधीन नहीं थे, यदि उन्होंने पाप किया होगा, तो वे बिना व्यवस्था के नष्ट हो जायेंगे; और जिन्होंने व्यवस्था के अधीन रह कर पाप किया होगा, उनका व्यवस्था के अनुसार न्याय किया जायेगा।
(13) क्योंकि व्यवस्था के सुनने वाले लोग परमेश्वर की दृष्टि में धार्मिक नहीं हैं, वरन् व्यवस्था का पालन करने वाले धार्मिक ठहराए जायेंगे।
(14) जब गैर-यहूदी, जिन्हें मूसा की व्यवस्था नहीं मिली, अपने आप उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, तो वे व्यवस्था-विहीन होते हुए भी स्वयं अपने लिए व्यवस्था हैं;
(15) क्योंकि वे अपने आचरण से इसका प्रमाण देते हैं कि व्यवस्था की आज्ञाएँ उनके हृदय पर अंकित हैं। उनका अन्त:करण भी इसके सम्बन्ध में साक्षी देता है। उनके विचार उन्हें कभी दोषी, तो कभी निर्दोष ठहराते हैं।
(16) यह सब उस दिन प्रकट किया जायेगा, जब परमेश्वर, मेरे शुभ समाचार के अनुसार, येशु मसीह द्वारा मनुष्यों के गुप्त विचारों का न्याय करेगा।
जो लोग सुसमाचार सुनते हैं और उसे अस्वीकार करते हैं
योहन 12:48 (HINDICL-BSI)
जो मेरा तिरस्कार करता और मेरी शिक्षा ग्रहण करने से इन्कार करता है, उसको दोषी ठहराने वाला एक है : जो वचन मैंने कहा है, वही उसे अन्तिम दिन दोषी ठहराएगा।
योहन 15:22 (HINDICL-BSI)
“यदि मैं नहीं आता और उन्हें शिक्षा नहीं देता, तो उन्हें पाप नहीं लगाता, परन्तु अब तो उनके पास अपने पाप का कोई बहाना नहीं।
पूछिए
क्या आपके पास अंतिम न्याय के बारे में कोई अन्य प्रश्न हैं?
आवेदन
ये सत्य हमारे लिए महत्वपूर्ण क्यों हैं?
a) प्रभु का डर क्या है?
(12) मेरे प्रिय भाइयो और बहिनो! जिस प्रकार आप लोग सदा मेरी बात मानते रहे हैं, उसी प्रकार अब भी-मेरी उपस्थिति से अधिक मेरी अनुपस्थिति में और भी अधिक उत्साह से आप लोग डरते-काँपते हुए अपनी मुक्ति के कार्य में लगे रहें।
(13) परमेश्वर अपना प्रेमपूर्ण उद्देश्य पूरा करने के लिए आप लोगों में सद् इच्छा भी उत्पन्न करता और उसके अनुसार कार्य करने का बल भी प्रदान करता है।
b) यह मुझे अपनी जिम्मेदारी से कैसे अवगत कराता है?
मारकुस 16:15-16 (HINDICL-BSI)
(15) तब येशु ने उन से कहा, “संसार के कोने-कोने में जाओ और प्रत्येक प्राणी को शुभ समाचार सुनाओ।
(16) जो विश्वास करेगा और बपतिस्मा ग्रहण करेगा, वह बचाया जाएगा। जो विश्वास नहीं करेगा, वह दोषी ठहराया जाएगा।
2 कुरिन्थियों 5:11 (HINDICL-BSI)
इस कारण प्रभु का भय हम में बना रहता है। हम मनुष्यों को समझाने का प्रयत्न करते रहते हैं। हमारा सारा जीवन परमेश्वर के लिए प्रकट है और मैं आशा करता हूँ कि वह आप लोगों के अन्त:करण के लिए भी प्रकट होगा।
c) मुझे अपने उद्धार में कैसे आनन्द मनाना चाहिए?
हबक्कूक 3:17-18 (HINDICL-BSI)
(17) यद्यपि अंजीर वृक्ष में फूल नहीं आए, अंगूर-लताओं में फल नहीं लगे, जैतून के फलों की फसल नहीं हुई, खेतों में भी अन्न नहीं उपजा, बाड़ों में भेड़-बकरी नहीं रही,
और पशुशालाओं में गाय-बैल नहीं रहे,
(18) तो भी मैं प्रभु में आनन्दित होऊंगा; मैं अपने उद्धारकर्ता परमेश्वर में हर्षित होऊंगा।
यशायाह 25:9 (HINDICL-BSI)
उस दिन लोग यह कहेंगे, “देखो, यही है हमारा परमेश्वर; हमने इसकी ही प्रतीक्षा की थी कि वह हमें बचाएगा। यही प्रभु है, हमने इसकी ही प्रतीक्षा की थी। आओ, हम उसके उद्धार के कारण आनन्द मनाएँ, हर्षित हों।”
फिलिप्पियों 1:11 (HINDICL-BSI)
और परमेश्वर की महिमा तथा प्रशंसा के लिए उस धार्मिकता से परिपूर्ण होंगे, जो येशु मसीह के द्वारा ही फलती-फूलती है।
मॉडल प्रार्थना
प्रभु यीशु, मुझे उद्धार देने के लिए आपका धन्यवाद। मुझे अपनी ज़िंदगी को अपनी ज़िम्मेदारी से जोड़ने में मदद करें, एक ऐसा जीवन जीने के लिए प्रेरित करें जो दूसरों को आपकी महान कृपा के बारे में बताता हो।
प्रमुख पध
परमेश्वर से कोई भी सृष्ट वस्तु छिपी नहीं है। उसकी आंखों के सामने सब कुछ खुला और अनावृत्त है। उसी को हमें लेखा देना पड़ेगा।
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